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शिक्षा,धन और मेधाशक्ति का सदुपयोग करनेवाले महान् शिक्षाविद् प्रो.अच्युत सामंत

-अशोक पाण्डेय
आनेवाले कल के विकसित भारत के लिए संस्कारी,कर्तव्यनिष्ठ,ईमानदार,जिम्मेवार,चरित्रवान,सच्चा देशभक्त तथा स्वावलंबी कर्णधारों की आवश्यकता है जिसमें एक व्यक्ति विशेष के रुप में कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा माननीय सांसद प्रो. अच्युत सामंत हैं। वे भारत के प्रथम महान शिक्षाविद् हैं जिन्हें देश-विदेश के कुल 53 विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त है। वे बडे ही सहृदय,संवेदनशील,आत्मीय स्वभाववाले परम ज्ञानी, विवेकी,विद्वान,सच्चरित्र तथा जिम्मेदार शिक्षाविद् हैं। उनका यह मानना है कि हमारा प्यारा भारतवर्ष महानऋषि-मुनियों का देश है। जहां पर मुनि वसिष्ठ तथा मुनि संदीपनि का गुरुकुल है। उन्होंने बताया कि शिक्षा के विषय में यह सत्य ही कहा गया है कि –
विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्रोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
-अर्थात् विद्या बालक को विनय देती है,विनय से बालक के स्वभाव में तथा आचरण में पात्रता आती है।पात्रता से उसे धन प्राप्त होता है और धन से वह अपने जीवन में मन,वचन और कर्म से सुखी होता है।बच्चों को दी जानेवाली यह शिक्षा दो प्रकार की होती है। एक औपचारिक शिक्षा तथा दूसरी अनौपचारिक शिक्षा। औपचारिक शिक्षा उसे जीवन में उसके उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होती है और अनौपचारिक शिक्षा उसे शाश्वत जीवन मूल्यों से अवगत कराकर उसे संस्कारी बनाती है। आज के 21वीं सदी के सूचना तकनीकी के युग में वे असाधारण शिक्षाप्राप्त, धनवैभवसंपन्न हैं।सकारात्मक सोचवाले हैं जो नित्य अपनी मेधा शक्ति आदि का सदुपयोग करते हैं।उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ.राजेन्द्र प्रसाद अपने छात्र जीवन में एक असाधारण तथा विलक्षण विद्यार्थी थे जिनकी बिहार बोर्ड प्रवेशिका परीक्षा के गणित विषय का ऐन्सरशीट आज भी उपलब्ध है जिसमें लिखा गया है कि परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है। उन्होंने 100 अंकों में से 100 अंक अर्जितकर यह सिद्ध कर दिया कि वे एक असाधारण तथा विलक्षण प्रतिभासंपन्न विद्यार्थी थे जो एक दिन भारत के प्रथम के प्रथम राष्ट्रपति ही नहीं बने अपितु भारतीय संस्कार और संस्कृति के आदर्श भी बने।पूरी दुनिया जानती है कि प्रो,अच्युत सामंत भी ठीक उसी प्रकार अपने द्वारा ओडिशा प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर में 1992-93 में मात्र पांच हजार रुपये की अपनी जमा पूंजी से कीट-कीस की स्थापनाकर विश्व के महान शिक्षाविद् बन चुके हैं। वे अपनी अर्जित विद्या,धन और बल का सकारात्मक सोच के साथ सदुपयोग करकेओडिशा के साथ-साथ पूरे भारत का गौरव पूरी दुनिया में बढा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि भगवान बुद्ध के मूलभूत संदेशों में विश्वप्रेम और अहिंसा ही है जो उनके व्यक्तिगत जीवन का आदर्श है।उन्होंने यह भी बताया कि स्वामी विवेकानंद ने अपने शिकागो भाषण में दुनिया को चरित्रवान बनने का संदेश दिया और प्रो.सामंत भी उसी संदेश को अपने जीवन में अपनाकर चल रहे हैं। उनका यह मानना है कि एक अच्छे व्यक्ति का मानदण्ड उसका सरल,सौम्य और आदर्श चरित्र होता है जो वे जी रहे हैं।प्रो. सामंत बताते हैं कि सभी आज बाहरी दिखावे,दूसरों की निंदा करने में , झूठी प्रसिद्धि पाने में,गलत मान-सम्मान अर्जित करने में तथा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लीन हैं लेकिन वे इनसब से कोसों दूर हैं। वे तो भारत के सनातनी आदर्श-वसुधैव कुटुम्कम्में विश्वास रखते हैं। और उसी को साकार करने में लगे हुए हैं।प्रो.अच्युत सामंत का यह मानना है कि उत्तम स्वास्थ्य,उत्तम शिक्षा तथा स्वावलंबन से ही आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सकता है इसीलिए प्रो. सामंत अपने द्वारा स्थापित कीट-कीस और कीम्स के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने में जुटे हुए हैं।
-अशोक पाण्डेय

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