-अशोक पाण्डेय
कालजयी सद्ग्रंथ महाकाव्य रामचरितमानस के बालकाण्ड के मंगलाचरण में गोस्वामी तुलसीदास ने स्पष्ट रुप में लिखा है-
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामति।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।
-अर्थात् शब्दों के अर्थसमूहों,रसों,छंदों और मंगलों को करनेवाली देवी सरस्वती और देवों में प्रथम पूज्य गणेश की मैं वंदना करता हूं।आगे वे लिखते हैं कि जिनके स्मरण मात्र से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं,जो समस्त गणों के स्वामी हैं,सुंदर हाथी के मुखवाले हैं,बुद्धि-विवेक के दाता हैं,जो समस्त शुभ गुणों के धाम हैं वे श्री गणेश भगवान जी मेरे ऊपर कृपा करें।श्री गणेश जी आरती में वर्णित है-जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा। माता जाके पारबती पिता महादेवा।।एकदंत दयावंत,चार भुजा धारी।मस्तक पर सिंदूर सोहे मूस की सवारा।।हार चढे,फूल चढे ओर चढे मेवा।लड्डूअन का भोग लगे,संत करे सेवा।। अंधन को आंख देत,कोढन को काया।बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया।।-यह श्री गणेश भगवान की आरती पूरी तरह से उनकी अपने भक्तों पर की गई कृपा और दया को स्पष्ट करती है।
वास्तव में भगवान श्री गणेश जी के विभिन्न अवतारों में से कुल 8 अवतार के विषय में वेदों ने बताये हैं। वे हैं-एकदंत, वक्रतुण्ड, महोदर, गजानन, विध्नविनाशक, लंबोदर,विकट और धूम्रवर्ण।वेदानुसार,महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नामक पुत्र की प्राप्ति की।मद ने दैत्य-गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बना दिया जिसके परिणामस्वरुप मद देवताओं को मारने-पीटने तथा प्रताडि़त करने लगा। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि वह भगवान शिव को भी पराजित कर दिया।यह देख, सारे देवताओं ने मिलकर श्री गणेश भगवान की आराधना की और तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट होकर देवताओं को अभय वरदान दिया जिससे मदासुर मारा गया।गणेश जी का वक्रतुण्ड अवतार राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए हुआ था जो शिव भक्त था और उसने शिव की उपासना करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा।उसने अपने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया।गणेश जी का तीसरा अवतार महोदर के रुप में हुआ।जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूस की सवारीकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्टदेव बना लिया।एक बार कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां देवी पार्वती की सुंदरता को देख कुबेर के मन में काम वासना पैदा हो गई जिससे लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य के पास गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न होकर उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दे दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और स्वयं शिव को भी उसके लिए कैलाश को छोडना पडा। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। उस समय गणेशजी गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि वे लोभासुर को पराजित कर देंगे। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।इसीप्रकार एक बार देवी पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर-जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दी। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया। शम्बरासुर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की और तब गणेश जी विघ्नविनाशक रुप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का नाशकर समस्त देवताओं को छुड़वाया।समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धारणकर किया तो भगवान शिव उन पर मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर पडा। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्माण्-विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गये। तब गणेश जी लंबोदर रूप धारणकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया। क्रोधासुर को अहसास दिलाये कि वह इस संसार में कभी भी अजेय नहीं हो सकता। तब क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़-छाडकर पाताल लोक चला गया।एकबार भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ जिसका नाम पडा कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। उसके उपरांत वह अन्य राक्षसों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सारे देवताओं ने मिलकर भगवान गणेश की आराधना की। तब भगवान गणेश ने विकट रूप में अवतार लिया। और देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित करा दिए।भगवान गणेश का एक अवतार धूम्रवर्ण अवतार भी वेद में वर्णित हो। एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्यदेव को अभिमान हो गया। ऐसा हुआ कि उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हो गई। उसका नाम पडा-अहम्। वह दैत गुरु शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें अपना गुरु बना लिया।जिसके परिणास्वरुप वह अहम् से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिया। उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।इसप्रकार देवों में प्रथम पूज्य गणेश जी अपने विभिन्न अवतारों में से खासकर कुल 8 अवतारों के द्वारा अपने सभी भक्तों का सदैव कल्याण करते हैं।
-अशोक पाण्डेय
श्रीगणेश जी के विभिन्न अवतार
