-अशोक पाण्डेय
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जैसा कि हमारे पुराण , विशेषकर स्कन्द पुराण यह स्पष्ट करता है कि भगवान जगन्नाथ के पूर्ण दारूब्रहृम के रूप में सर्वप्रथम महोदधि के तट पर एक पवित्र दारू लट्ठे (काष्ठय)के रूप में प्लावित नजर आये जिससे मालवा (अवंती) नरेश इन्द्रद्युम्न ने गुण्डीचा मंदिर में भगवान विश्वकर्मा से चतुर्धा देवविग्रह तैयार कराया। श्री पुरी धाम को पुरुषत्तोम क्षेत्र,शंख क्षेत्र जैसे अनेक आध्यात्मिक नाम है। यह धाम, क्षेत्र और तीर्थ स्थल भी है। यह एक धर्म कानन है जहां का स्वर्गद्वार महोदधि के तट पर अवस्थित (श्मशानघाट) प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता है। भगवान जगन्नाथ के चरणस्पर्श के लिए महोदधि शोर करता है लेकिन उसकी आवाज श्रीमंदिर के मेघनाद प्राचीर को पार नहीं कर पाता। पुरुषोत्तम क्षेत्र में सभी धर्मों और सम्प्रदायों के मठ भी हैं जहां पर जगन्नाथ संस्कृति की शिक्षा- दीक्षा दी जाती है।