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“संगति का फल”

-अशोक पाण्डेय
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यह सच है कि बुरी संगति का फल बुरा होता है और अच्छी संगति का फल अच्छा होता है। एक पेड़ पर दो तोते रहते थे। एक बार एक बहेलिया आया और दोनों तोतों को पकड़ लिया और उन्हें ले जाकर बेच दिया। एक तोते को एक चोर ने खरीद लिया और दूसरे को एक संन्यासी ने। चोर ने अपने तोते को सिखाया: ” पकड़ों- पकड़ो,मारो -मारो। संन्यासी ने अपने तोते को सिखाया:”आइए, बैठिए। आपका स्वागत। मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?” एक बार उस इलाके का जमींदार उधर गुजर रहा था। गर्मी का दिन था। इसलिए वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा और उसी पेड़ पर चोर वाला तोता रहता था। जमींदार के कानों में अचानक आवाज सुनाई दी-“पकड़ों- पकड़ो,मारो-मारो।” जमींदार आगे बढ़ा और एक संन्यासी की कुटिया में आया । वहां भी एक तोते ने मधुर वाणी में आवाज लगाई: आइए, बैठिए। कुटिया में आपका स्वागत है। मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?”जमींदार ने संन्यास से पूछा कि आपने तोते को अच्छा सिखाया है आदर -सत्कार के लिए। संन्यासी ने जवाब दिया कि आज भारतवर्ष के लोगों को आदर सत्कार के संस्कार की आवश्यकता है जो अच्छी संगति से ही प्राप्त हो सकता है। यह सीख हमें तोते से लेनी चाहिए। जमींदार लोट आया और अपने इलाके के सभी से यह अपील की कि सभी अपने घर आये अतिथियों का स्वागत पूरी श्रद्धा और विनम्रता के साथ यथासंभव करें। धन्य है हमारा भारत जहां के तोते भी हमें अच्छी- बुरी संगति का संदेश देते हैं।
मान्यवर, आप भी अपनी संगति को सुधारें!
-अशोक पाण्डेय

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