-अशोक पाण्डेय
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मैंने अपने 73 वर्ष की आयु में अबतक एक ही साधारण उद्योगपति को देखा जो सफारी पहनता है। साधारण जीवन यापन करता है। धर्मात्मा है। दानी है। परोपकारी है। उसके दरवाजे से आजतक कोई खाली नहीं गया है। जब मैंने उस उद्योगपति से यह पूछा कि आपका बेटा कैसा है? तो वे मुस्कुराते हुए जवाब दिए कि मेरा बेटा होनहार है, तेजस्वी है और हमारे कारोबार में पूर्ण सहयोग देता है। मैंने उसे साधारण जीवन जीने तथा व्यावहारिक बनने का संस्कार दिया है। यहां पर एक लघु कथा सुनाता हूं। गांव की तीन महिलाएं किसी कुएं पर पानी भर रहीं थीं और अपने- अपने बेटों की बखान कर रही थीं। एक ने कहा कि उसका बेटा विद्वान है। उसके सामने और कोई नहीं है। दूसरे ने कहा कि उसका बेटा इंजीनियर है। उसके बेटे जैसा और कोई नहीं है।तीसरी ने कहा कि उसका बेटा साधारण परन्तु व्यावहारिक बेटा है। तीनों पानी भरकर चल दीं। रास्ते में तीनों के बेटे मिले। दो के बेटों ने तीनों महिलाओं को सादर प्रणाम कर चलते बने लेकिन तीसरी महिला के बेटे ने तीनों को सादर प्रणाम किया।उनका हालचाल जाना और अपनी मां का मटका अपने सिर पर उठाकर घर ले गया।
मान्यवर,आज बच्चों को साधारण जीवन और व्यावहारिक जीवन जीने का पाठ पढ़ाना बहुत ज़रूरी है।
-अशोक पाण्डेय