बिस्वास,भुवनेश्वर द्वारा न्यूबालीयात्रा मैदान,मंचेश्वर,कुआखाई नदी तट पर समस्त तैयारियां हुईं पूरी
छठघाट पर लगभग 10 हजार लोगों के आने की उम्मीद
भुवनेश्वरः18 नवंबरःअशोक पाण्डेयः
सरकारी पंजीकृत सामाजिक कल्याण संस्था बिस्वास,भुवनेश्वर द्वारा दूसरी बार न्यू बाली यात्रा मैदान,मंचेश्वर कुआखाई छठघाट पर इस वर्षः2023 में भी आयोजित हो रहा है भगवान सूर्यनारायण तथा छठ परमेश्वरी के दो दिवसीय 19-20 नवंबर को सामूहिक अर्घ्य अर्पण का पावन कार्यक्रम।19 नवंबर को नदी के जल में पश्चिम दिशा में मुंहकर के तथा हाथ जोड़कर खड़े होकर दिया जाएगा सायंकालीन अर्घ्य जबकि 20 नवंबर को नदी के जल में पूरब दिशा में मुंहकर और हाथ जोड़कर खड़े होकर दिया जाएगा भोर का अर्ध्य।संस्था के अध्यक्ष संजय कुमार झा के अनुसार गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष 19-20 नवंबर को छठघाट पर लगभग 10 हजार लोगों के आने की उम्मीद की जा रही है जिसमें लगभग 500 छठव्रतीगण तथा हजारों की संख्या में उनके स्वजन और परिजन समेत हजारों की संख्या में स्थानीय आमंत्रित अतिथिगणों के आगमन की संभावना है।स्थानीय यूनिट-3 राममंदिर के मुख्य पुजारी पण्डित महारुद्र झा के अनुसार ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में छठ पर्व मनाने की परम्परा सुदीर्घ रही है। उन्होंने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के समय लगातार दो सालों तक छठव्रती लोग स्वयं अपनी-अपनी छतों पर पोखर बनाकर छठ पूजा किये लेकिन पूजा की आस्था,विश्वास और श्रद्धा में कोई कमी नजर नहीं आई।वहीं स्थानीय 120 पैदलवाहिनी तथा सीआरपीएफ समूह केन्द्र,भुवनेश्वर में भी छठव्रती प्रत्येक वर्ष छठ करते हैं। सच तो यह है कि छठ मनाने की परम्परा सबसे पहले बिहार से ही आरंभ हुई क्योंकि भगवान सूर्यदेव के पिता तथा माता जी बिहार के बक्सर के रहनेवाले थे।भगवान सूर्यदेव की अर्ध्य उपासना का आरंभ कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि से हुई।पण्डित महारुद्र झा ने यह भी बताया कि वे मिथिला के रहनेवाले हैं और उन्हें यह जानकारी है कि भगवान श्रीरामचन्द्र महाभाग तथा उनकी पत्नी जनकनंदिनी सीता माई पहली बार कार्तिक शुक्ल षष्ठी को बिहार के मुंगेर में पवित्र नदी गंगा में छठ का अर्ध्य दिया था। तभी से यह परम्परा बिहार से आरंभ हुई और आज तो यह भारत के अनेक महानगरों समेत अमरीका तथा कनाडा आदि देशों में भी भारतीय मूल के बिहारी,झारखण्डी तथा उत्तरप्रदेश समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।महारुद्र झा के अनुसार यह छठव्रत यह भी संदेश देता है कि जिसका अस्त होनेवाला होता है उसको कोई नहीं पूछता लेकिन छठव्रती भगवान सूर्यदेव तथा छठ परमेश्वरी को अपना सायंकालीन प्रथम अर्ध्य देकर यह सिद्ध करते हैं कि जीवन का यह शाश्वत सत्य है उदय और अस्त जिसकी सीख भगवान सूर्यदेव देते हैं उसीलिए उनको ही उनके डूबते समय में पहला अर्ध्य दिया जाता है जो साक्षात अतीत की याद का पावन संदेश है ।सूर्यदेव ही इस सृष्टि के प्रत्यक्ष देव हैं जिनको उनके अस्ताचलगामी होने तथा अगले दिन उनके उदीयमान होने के वक्त उनको अर्ध्य देकर छठव्रती उनके प्रति अपनी श्रद्धा,आस्था और विश्वास को कायम रखते हैं।भोर का अर्ध्य भविष्य को बचाने का संदेश है।कहते हैं कि कुंती ने भी संतानप्राति के लिए छठ व्रत की थी।छठ आयोजन से जुड़े बिस्वास भुवनेश्वर के उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह के अनुसार उनकी पत्नी उमा सिंह प्रत्येक वर्ष छठ करतीं हैं और छठ परमेश्वरी की असीम कृपा से उनकी संतानें सदैव खुशहाल हैं।पूरा परिवार सुख,शांति और समृद्धि के साथ रह रहा है। मिली जानकारी के अनुसार ओडिशा प्रदेश के महामहिम राज्यपाल रघुवर दास जी तथा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी ने भुवनेश्वर तथा पूरे ओडिशा में छठ करनेवालों को अपनी-अपनी शुभकामनाएं दी हैं।मिली जानकारी के अनुसार 19 नवंबर को सायंकालीन अर्ध्य का समयः3.30 बजे से आरंभ होगा जबकि 20 नवंबर को भोर में अर्ध्य 4.30 बजे से आरंभ होगा।संस्था के अभिन्न पदाधिकारी देवाशंकर त्रिपाठी के अनुसार यह छठ का दोनों अर्ध्य क्रमशः हमारे अतीत तथा भविष्य को बचाने का पावन संदेश है।संस्था के महासचिव चन्द्रशेखर सिंह के अनुसार दोनों दिन 19-20 नवंबर को छठघाट पर बिस्वास स्थानीय कुछ विशिष्ट मेहमानों को सादर आमंत्रित किया है।साथ ही साथ छठघाट पर ही 20 नवंबर को भोर में बिस्वास की ओर से सभी के लिए छठ का ठेकुआ प्रसाद वितरण की व्यवस्था गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी की गई है।
-अशोक पाण्डेय