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स्वामी व्यासानंद जी का मनुष्य-जीवन की सार्थकता विषयक प्रवचन भुवनेश्वर में आयोजित

भुवनेश्वरः28दिसंबरःअशोक पाण्डेयः
भुवनेश्वर सत्संग मण्डली की ओर से 27 दिसंबर को सायंकाल स्थानीय सत्संग भवन,एन-2,नयापली में हरिद्वार से पधारे स्वामी व्यासानंद जी के प्रवचन का कार्यक्रम रखा गया था जिसमें व्यासपीठ से स्वामीजी ने अपने सारगर्भित प्रवचन में मनुष्य-जीवन की सार्थकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ईश्वर ने हमें मनुष्य-जीवन इसलिए दिया है कि हमसब ईश्वर की आराधना कर सकें।जीवन की सार्थकता ईश-भजन और सत्संग करने में ही है। संत-महात्मा का जीवन सादगी का जीवन होता है लेकिन उनके आध्यात्मिक विचार जीवनोपयोगी होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई सिनेमा देखने जाता है तो वह समय से पहले जाता है और सिनेमा खत्म होने पर ही घर लौटता है इसलिए कि सिनेमा का कुछ भी अंश उसके देखने से छूट न जाय। लेकिन यह बड़े ही दुख की बात है कि मात्र एक घण्टे के प्रवचन सुनने के लिए लोग एक-एककर आते हैं अपने-अपने मोबाइल फोन पर ही लगे रहते हैं। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि 84लाख योनियों में मनुष्य-जीवन बड़े पुण्य के बाद ही प्राप्त हुआ है जो दोबारा मिलना बड़ा कठिन है। किसी के साथ कुछ भी नहीं जाएगा न अर्थ, न धर्म, न काम आदि सिर्फ जाएगा तो उसका पुण्यकर्म ही। और पुण्यकर्म की जानकारी तो सत्संग से ही प्राप्त हो सकती है।उन्होंने यह भी बताया कि अयोध्या में आगामी 22 जनवरी,24 को भगवान राम की प्राणप्रतिष्ठा का विराट कार्यक्रम है लेकिन क्या आपसब यह जानते हैं कि भगवान श्रीराम की मूर्ति तो पत्थर की है जिसमें रामलला की प्राणप्रतिष्ठा उस दिन होगी।भक्तजनों,राम जो कण-कण में विराजमान हैं उनको पत्थरों में प्रतिष्ठित करना ही तो हमारी सनातनी परम्परा की अनोखी विशेषता है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास की सजा भुगतकर जब अयोध्या लौटे तो उनके संगी वानर-भालू भी अयोध्या उनके साथ रहने के लिए आये। वह भी मानव रुप धारण कर जिससे वे अपने राम की स्तुति नित्य कर सकें ,उनकी वंदना नित्य कर सकें तो आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। आइए,हमसब संकल्पित होकर भगवान श्रीराम की आराधना में सत्संग करें और मानव-जीवन को सार्थक बनाएं।व्यासपीठ पर कथाव्यास जी का स्वागत आयोजन पक्ष की ओर से सी.ए. अनिल अग्रवाल एवं अन्य ने किया।
अशोक पाण्डेय

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