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“हमारा सत्कर्म ही सच्चा धर्म है।”

विचार: अशोक पाण्डेय का।
करुणा हमारे हृदय का वह संवेदनशील और कोमल भाव होता है जो हमें सत्कर्म धर्म की ओर उन्मुख करता है। आदिकवि वाल्मीकि के हृदय की सच्ची करुणा ही उनके रामायण महाकाव्य के रूप में प्रकट हुई। क्रौंची-क्रौंच पक्षी के जोड़े की तरह ही उनके द्वारा रचित रामायण में सीता-राम के अलग होने की कथा है । वाल्मीकि जी ने श्रीराम का परिचय धर्म के विग्रह के रूप में किया है-“रामो विग्रहवान धर्म:।” और यह धर्म उनके अनुसार कर्म या कर्तव्य ही है। वहीं, वाल्मीकि जी का धर्म अपनी वाणी पर नियंत्रण रखकर किसी से ईर्ष्या न करने, दूसरों में दोषों को न निकालने तथा दूसरों की निंदा न करने का संदेश देता है। वाल्मीकि के राम मानव की आंतरिक चेतना की सात्विकता पर श्रद्धा रखते हैं। वहीं तुलसीदास के श्रीरामचरितमानस महाकाव्य के नायक श्रीराम के मर्यादापूर्ण तथा आदर्शमय जीवन के माध्यम से धर्म स्पष्ट होता है अहिल्या,केवट और शबरी आदि के पास स्वयं जाकर उन पर भरपूर कृपा के रुप में। आज तो राममय भारतवर्ष में प्रत्येक भारतवासी का धर्म है स्वयं चरित्रवान, ईमानदार, जिम्मेदार और सच्चा देशभक्त नागरिक बनना और राममय भारतवर्ष को एक विकसित राष्ट्र बनाने में पूर्ण सहयोग देना।
-अशोक पाण्डेय

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