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“1986 में जब भगवान जगन्नाथ ने ‘चण्डालिका’नामक अपनी भक्तिन के लिए रथयात्रा रोक दी थी।”

-अशोक पाण्डेय

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यह दिव्य घटना 1986 की है। रथयात्रा की सारी रीति -नीति संपन्न हो चुकी थी। भगवान जगन्नाथ भी अपने रथ नंदिघोष की सीढ़ियों पर पहुंच चुके थे। लेकिन हठ करके रथारूढ़ नहीं हो रहे थे। तभी उनके मुख्य सेवायत को एक भविष्य वाणी सुनाई दी कि भगवान जगन्नाथ की एक भक्तिन पश्चिम बंगाल के खड़गपुर के समीप के एक गांव से पैदल चलकर रथयात्रा देखने आ रही है। वह पुरी धाम तक पहुंच गई है। उसे लाया जाय तभी भगवान रथयात्रा करेंगे। उस भक्तिन को सम्मान लाया गया।और चण्डालिका ने जैसे ही नंदिघोष रथ का संस्पर्श किया भगवान जगन्नाथ ने अपनी रथयात्रा आरंभ कर दी।
जय जगन्नाथ जी!
-अशोक पाण्डेय

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