विचार: अशोक पाण्डेय
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हमारी मानसिक मनोदशाओं में दो ऐसी हैं जो हमें देव तुल्य और दैत्य तुल्य बना देती हैं।
एक सिद्ध संत अपने परम प्रिय शिष्य दीनदयाल के साथ बैठे मौनव्रत की शिक्षा दे रहे थे तभी एक व्यक्ति आया और दीनदयाल को भद्दी- भद्दी गालियां देने लगा। जबतक वह गालियां देता रहा तबतक तो सिद्ध संत चुपचाप मौन बैठे रहे लेकिन जैसे ही उनका शिष्य दीनदयाल गालियों का जवाब गालियों से देने लगा वे उठकर चल दिए। अगले दिन दीनदयाल से अपने गुरु जी उस घटना के विषय में पूछा सिद्ध संत ने जवाब दिया कि जबतक शिष्य मौन था तबतक उसके दिल में देवत्व का वास था लेकिन जैसे वह गालियों का जवाब गालियों से देने लगा तो उसके दिल में राक्षसत्व का भाव आ गया। मान्यवर, हमारे सभी सद्गुरु और सद्ग्रंथ हमें मौन रहने और क्रोध न करने का संदेश देते हैं।
-अशोक पाण्डेय









