‘नेबरगुड: ब्रिंगिंग गुड टू नेबर’
(अच्छा पड़ोसीःअपने पड़ोसी के लिए अच्छा)
विश्लेषकःअशोक पाण्डेय,राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त.
कीट-कीस-कीम्स के संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत वैसे तो विदेह राजा जनक हैं जिनका सर्वस्व शैक्षिक,सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक एवं आध्यात्मिक योगदानः परोपकाराय संता विभुतयः ही हैं।वे कीट-कीस-कीम्स और कलिंग टेलीविजन(क्षेत्रीय चेनल) के लगभग दो लाख युवाओं- वतियों,अधिकारियों तथा कर्मचारियों के प्रत्यक्ष रुप में भाग्यविधाता हैं जबकि लगभग 10 लाख लोगों के स्वरोजगार के लिए सुअवसर प्रदान करनेवाले विकास पुरुष हैं। वे ओड़िशा के एकमात्र ऐसे निःस्वार्थ लोकसेवक हैं जिन्होंने 2036 के विकसित भारत की समस्त संभावनाओं के द्वार अपने जीवन के मात्र 30 वर्षों में ही अपनी असाधारण शैक्षिक पहल,स्वास्थ्य पहल,ओड़िशा की कला, साहित्य, संस्कृति,खेल,सिनेमा,मनोरंजन,फैशन,विज्ञान,ग्रामीण विकास और धार्मिकता को फर्स से अर्स तक पहुंचा दिया है। वे राजा जनक की तरह ही अपने जीवन के सभी अर्जित पुण्य गरीबों,लाचारों,वंचितों और जरुरमंदों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिए हैं। 17मई,2013 को बैंगलुरु से आरंभ उनका वास्तिवक जीवन-दर्शनः ऑर्ट ऑफ गिविंग आज अन्तर्राष्ट्रीय स्वरुप ले चुका है जो विश्व मानवता को एकजुट करने के लिए एक सामाजिक आंदोलन बनकर वसुधैव कुटुंकम् का सपना साकार कर रहा है। ‘नेबरगुड: ब्रिंगिंग गुड टू नेबर'(अच्छा पड़ोसीःअपने पड़ोसी के लिए अच्छा) जो 2025 के लिए ऑर्ट ऑफ गिविंग का थिम है। इसलिए यहां पर प्रोफेसर अच्युत सामंत के अपने पैतृक गांव कलराबंक से जुड़ी एक वास्तविक घटना का सीधा संबंध जो उनके जीवन से है उसका वर्णन करना बहुत जरुरी है। प्रोफेसर सामंत जब 11 साल के थे तो उनका एक बाल मित्र था जो उनको बहुत चाहता था जबकि प्रोफेसर सामंत का अपना नाम भी नहीं था(बाल मित्र उनको उनकी गरीबी के चलते,निहायत दुबले-पतले होने के कारण, सुकुठा कहकर पुकारते थे।)उन्हें दो शाम की रोटी भी नसीब नहीं थी। उनका पड़ोसी मित्र धनी था। एकबार प्रोफेसर सामंत बीमार पड़ गये। उनके धनी मित्र से पैसे के बल पर उनके लिए डॉक्टर बुलाया। दवाइयां खरीदकर दिया। कुछ दिनों के बाद प्रोफेसर सामंत स्वस्थ हो गये। मित्र ने प्रोफेसर सामंत को हरप्रकार के मदद की। वे ऱघुनाथपुर हाई स्कूल में उसी की साइकिल के पीछे बैठकर पढ़ने जाते थे। उसी की पुरानी किताबों से पढ़ते थे। एक दिन वह मित्र बीमार पड़ गया। प्रोफेसर सामंत के पास तो पैसे नहीं थे पर सहानुभूति संग आत्मीयता तो थी। उन्होंने अपने बीमार मित्र की खूब सेवा की। कुछ दिनों के बाद मित्र स्वस्थ हो गया। उसने एक बात अवश्य कही कि अच्छा पड़ोसी प्रोफेसर सामंत ही थे जिन्होंने पूरी सहानुभूति के साथ उसकी सेवा की और वह स्वस्थ हो गया। आज जहां गांवों में पड़ोसी-पड़ोसी के बीच अपनत्व नहीं है,वे एक-दूसरे के विरोधी और दुश्मन बनकर रह रहे हैं ऐसे महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत के वास्तविक जीवन दर्शन का 2025 वर्ष का थिम ‘नेबरगुड: ब्रिंगिंग गुड टू नेबर’वरदान तुल्य सिद्ध होगा। यही नहीं,शहरों में जिस प्रकार एपार्टमेंट कल्चर विकसित हो चुका है वहां पर आस-पड़ोस में दूरियां सबसे अधिक बढ़ चुकी है जिसके निदान के लिए और आपसी रिश्तों को मधुर बनाने की दिशा में रामबाण सिद्ध होगा। आवश्यकता है विचार-विनिमय संस्कृति को अपनाने की तथा अपनी मानसिकता को बदलने की क्योंकि अच्छा पड़ोसी ही अपने पड़ोसी के लिए अच्छा होता है।
-अशोक पाण्डेय