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“सनातनी देवालय हमें झुकना, विनम्र होना और ईश्वर भक्त बनना सिखाते हैं।”

-अशोक पाण्डेय

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सनातनी देवालय निश्चित रूप से झुकना, विनम्र होना और ईश्वर भक्त बनना सिखाते हैं। वैसे यह भी शाश्वत सत्य है कि अधिकांश सनातनी सिर्फ और सिर्फ दु:ख के दिन में ईश्वर की शरण में जाते हैं। देवालय जाकर हाथ जोड़ते हैं।पूजा -पाठ करते हैं। खराब ग्रह आदि की शांति के लिए यज्ञ आदि कराते हैं और दान -पुण्य करते हैं। मान्यवर, क्या आपने कभी यह सोचा है कि सनातनी देवालय के निर्माण के पीछे हमारे धर्मगुरुओं का क्या उद्देश्य रहा है? सनातनी धर्मगुरु देवालयों के निर्माण के सुझाव देते समय निर्माणकर्ता से ऐसे देवालय बनाने के लिए कहते हैं जिसमें देवता का दिव्य सिंहासन सबसे ऊपर हो और दर्शन करने वाले के खड़े होने का स्थान नीचे हो और देवालय में झुककर जाने का प्रावधान हो। सबसे बड़ी बात यह हो कि वहां पर शांतिपूर्वक बैठकर कथा श्रवण आदि की व्यवस्था हो। देवालय में ईश्वर के श्रृंगार व नियमित पूजा- पाठ और भोग आदि लगाने की सर्वोत्तम व्यवस्था हो। आप अगर देवालय जाते हैं तो आपको अपने जीवन में झुकना, विनम्र रहना और सुख के दिनों में भी पूजा -पाठ अवश्य करना चाहिए।
-अशोक पाण्डेय

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