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“लोग ईर्ष्यालु क्यों बनते हैं?”

-अशोक पाण्डेय

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एक बड़ा ही उपयोगी भजन है जिसका संदेश है: ” भला किसी का कर न सकें तो बुरा किसी का न करना।…” ईर्ष्या मन की ऐसी कमजोर मानसिक अवस्था है जिसकी आदत व्यक्ति को एक बार पड़ जाती है तो वह व्यक्ति अपने विकास की चिंता न करके दूसरों के प्रति ईर्ष्या करने लगता है और यह ग़लत आदत बढ़ते-बढ़ते उस व्यक्ति का सहज स्वभाव बन जाता है ।और यह मनोविकार व्यक्ति के जीवन से मरने के बाद ही जाता है। श्रीमद् भागवत में, श्रीमद् भागवत गीता में, श्रीरामचरितमानस में, महाभारत आदि की कथा में ऐसे ईर्ष्यालु व्यक्ति के अनेक दृष्टांत मिलते हैं। मनुष्य जीवन तो अनिश्चिताओं का खेल है। कब सांस रुकी और कब परलोक गमन हुआ, कोई नहीं जानता है। ऐसे में विकसित भारत के निर्माण हेतु भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आदि के प्रति ईर्ष्या का त्याग प्रत्येक भारतवासी के लिए परम आवश्यक है।
-अशोक पाण्डेय

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