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“व्यक्ति प्रतिदिन जीता -मरता है।”

-अशोक पाण्डेय

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मेरा यह व्यक्तिगत विचार है अपने लंबे जीवन के अनुभव का कि प्रत्येक व्यक्ति अपने निर्धारित दायित्वों के सफल और सफल उपलब्धियों के बदौलत प्रतिदिन जीता -मरता है। जैसे: मैं अपने केन्द्रीय विद्यालय संगठन के कार्यकाल में एक हिन्दी शिक्षक था। जिस दिन मैं अपने अध्यापन से बच्चों को खुश कर देता था और बच्चे आकर मुझसे यह कहते थे कि श्रीमान् आज आपने बहुत अच्छा पढ़ाया,उस दिन मैं अपने आप को सचमुच जीवित महसूस करता था लेकिन जिस दिन मेरे अध्यापन से बच्चे खुश नहीं होते थे उस दिन मैं अपने आपको मृत् समझता था। अपने आपको मैं हमेशा और प्रतिदिन जीवित रखने का प्रयास अपने पूरे सेवाकाल में निभाया चाहें भारत के केन्द्रीय विद्यालय हों या मास्को का भारतीय दूतावास हो। मेरा यह मानना है कि इसी प्रकार एक डॉक्टर, इंजीनियर, समाजसेवी, उद्योगपति, कारोबारी तथा डेलीवेजेज पर काम करने वाले हों ; सभी प्रतिदिन अपने अच्छे- बुरे कार्यों के बदौलत जीते -मरते हैं। आपसे विनम्र निवेदन है कि आप भी प्रतिदिन जीवित रहने की कोशिश करें!
-अशोक पाण्डेय

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