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“गंगा सिर्फ पवित्रतम नदी नहीं है अपितु विकास को सतत बढ़ाने वाली दैवी ऊर्जा शक्ति है।”

-स्वतंत्र विचार: अशोक पाण्डेय का।

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“शंकर तेरी जटा से निकली है गंगधारा।”यह सच है कि गंगा भारतवर्ष की पवित्रत नदियों में से पवित्रतम नदी है। यह नदी काशी जो भगवान शंकर के त्रिशूल पर अवस्थित है । वाराणसी के चोरों तरफ से होकर गंगा प्रवाहित है। ‘गंगा’ का व्यावहारिक अभिप्राय है- जो विकसित नहीं है उसे विकासशील बनाना और जो विकासशील है उसे विकसित बनाना। और गंगा की यह प्रक्रिया सतत जारी है। प्रयोगराज के महाकुंभ में जो करोड़ों साधु, महात्मा, संन्यासी और मातु गंगे भक्तों ने जो हाल ही में पवित्र स्नान किया उससे एक बात तो स्पष्ट है कि दैवी ऊर्जा वाली गंगा मां सभी की है।वह सभी को सभी प्रकार से विकसित बनाती है।
-अशोक पाण्डेय

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