-अशोक पाण्डेय
श्रीजगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंगवंश के प्रतापी राजा चोल गंगदेव ने कराया था। यह जगन्नाथ मंदिर ओडिशा स्थापत्य तथा मूर्तिकला का बेजोड़ उदाहरण है क्योंकि ओड़िशा भारत के इकलौते उत्कृष्ट कलाओं का प्रदेश है। श्रीजगन्नाथ मंदिर को श्रीमंदिर(देवी लक्ष्मी के मंदिर) के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पूर्व दिशा में सिंहद्वार है जिसके ठीक ऊपर की दीवार पर भगवान विष्णु के दशावातार का सुंदर चित्र उकेरा गया है।यह महाद्वार धर्म का प्रतीक है।मंदिर का पश्चिम द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है।मंदिर का उत्तर महाद्वार हस्तीद्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर का दक्षिण महाद्वार अश्वद्वार है जो ज्ञान का प्रतीक है।श्रीमंदिर के रत्नवंदी पर अनादिकाल से चतुर्धा देवविग्रह के रुप में विराजमान हैं कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म भगवान जगन्नाथ। इनके दर्शन मात्र से शांति,एकता और मैत्री का पावन संदेश देते हैं। यह जगन्नाथ मंदिर लगभग 10 एकड़ में फैला हुआ है।गत वर्ष (2024 में)श्रीमंदिर परिक्रमा(प्रदक्षिणा) प्रकल्प आरंभ हुआ जिसके चलते प्रतिदिन हजारों जगन्नाथ भक्त जगन्नाथ मंदिर की प्रदक्षिणा कर के ही जगन्नाथ मंदिर में जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं। गौरतलब है कि सनातनी शाश्वत परम्परानुसार भगवान के दर्शन से पूर्व मंदिर प्रदक्षिणा जरुरी होती है और यह मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।इसलिए जगन्नाथपुरी में गत वर्ष से आरंभ प्रदक्षिणा गलियारे का पूरी तरह से आध्यात्मिक महत्त्व है जो पिछले साल 17 जनवरी से आरंभ हो चुका है।इस प्रदक्षिणा गलियारे की नींव 24 नवंबर,2021 को रखी गई थी।भगवान जगन्नाथ के प्रथमसेवक पुरी के गजपति महाराजा दिव्य सिंहदेवजी के अनुसार इस प्रदक्षिणा गलियारे के बन जाने से श्री जगन्नाथ पुरी धाम का आध्यात्मिक महत्त्व बहुत बढ़ गया है। जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के अनुसार स्कन्द पुराण के अनुसार ही श्रीमंदिर के सारी रीति-नीति प्रतिदिन अनुष्ठित होती है। गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेव जी के अनुसार ओड़िशा के साथ-साथ पूरे भारत में तथा पूरे विश्व में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ही अनुष्ठित होनी चाहिए। साथ ही साथ उन्होंने प्रत्येक जगन्नाथ मंदिर में श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रदक्षिणा गलियारा बनाने की भी अपील की है।पुरी के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग के अनुसार श्रीजगन्नाथ मंदिर की प्रदक्षिणा की कोई सीमा नहीं है जबकि भगवान शिव के मंदिर की प्रदक्षिणा मात्र आधी होती है।श्रीपुरी धाम आनेवाले भक्तों का यह मानना है कि इस नये श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रदक्षिणा गलियारे के बन जाने से भक्तगण सबसे पहले श्रीमंदिर प्रदक्षिणा कर अपने सभी कर्मेंद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों के सभी दोषों से मुक्त होते हैं और सिंहद्वार से श्रीमंदिर में जाने से पूर्व जब वे 22 सीढ़ियों को पार करते हैं तो उनके अन्य 22 दोषों से मुक्ति मिल जाती है और तब जाकर वे भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं। भगवान जगन्नाथ के विग्रहदेव रुप के समक्ष वे वे अपने दोनों हाथ उपरकर अर्थात् अपने अहंकार का त्यागकर जय जगन्नाथ का घोष करते हैं,अपने अंतःकरण के जगत के नाथ को चतुर्धा देवविग्रह रुप में दर्शन करते हैं।गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों की आस्था और विश्वास के देव हैं जो भारत के चार धामों में नाथ के नाम से जाने जाते हैं। सबसे पहले वे बदरीनाथ में सोकर उठते हैं। द्वारका में द्वारकानाथ के रुप में श्रृंगार करते हैं। जगन्नाथ पुरी में जगत के नाथ के रुप में 56 प्रकार के अन्न-भोग को ग्रहण करते हैं तथा रामेश्वरनाथ के रुप में रामेश्वर में जाकर शयन करते हैं। इसप्रकार भगवान जगन्नाथ भारत के चारों धामों में क्रमशः बदरीनाथ,द्वारकानाथ,जगन्नाथ तथा रामनाथ के रुप में जाने जाते हैं और पूजित होते हैं। इन चारों धामों में उनके मंदिर की प्रदक्षिणा भक्तों के जीवन में लौकिक और आध्यात्मिक चेतना के भाव का संचार करता है।
-अशोक पाण्डेय