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“मन को नियंत्रित करें‌ और दिल जो कहे वही काम करें!”

-अशोक पाण्डेय

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अपने चंचल मन को मौन साधना के माध्यम से नियंत्रित करें और अपने दिल की करुण भावना और संवेदनशील विचारों को अपनाएं! सद्गुरूओं, सद्ग्रंथों और विभिन्न सत्संगों का भी यही मत है। भगवान जगन्नाथ भी अपने भक्तों की आस्था और विश्वास को ही विशेष महत्त्व देते हैं और यही जगन्नाथ संस्कृति की सबसे बड़ी खूबी है। इसीलिए भगवान जगन्नाथ करुणासागर बनकर , दीनबंधु बनकर, दीनानाथ बनकर और विश्व के पालनहार बनकर अपने दिल की पुकार सुनकर सभी का मंगल करते हैं।
जय जगन्नाथ!
-अशोक पाण्डेय

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