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भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्धः विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव

-अशोक पाण्डेय
प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को श्रीजगन्नाथ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा अनुष्ठित होती है जो विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है।
वास्तव में भगवान जगन्नाथ विश्व के पालक हैं,पालनहार हैं। वे भक्तों के भाव के इष्टदेव हैं,गृहदेव हैं,ग्राम्यदेव हैं,ओड़िशा प्रदेश के राज्य देव हैं तथा पूरे विश्व की सभी संस्कृतियों के प्राण हैं।गौरतलब है कि हमारे 18 पराणों में सबसे बड़ा पुराण स्कन्द पुराण है जिसमें कुल 81 हजार श्लोक हैं।उस सकन्द पुराण के वैष्णव खण्ड में श्री पुरुषोत्त्म महात्म्य का वर्णन है। भगवान जगन्नाथ महात्म्य की जानकारी सर्वप्रथम भगवान शिव स्कन्दजी को देते हैं,स्कन्दजी महर्षि जैमिनि को देते हैं और जैमिनि जी मंदराचल पर्वत पर समस्त मुनियों को देते हैं। वास्तव में श्रीजगन्नाथ संस्कृति की सात्विक और तात्विक जानकारियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री जगन्नाथ महात्म्य में नामगुण,रुप गुण,धाम गुण और लीला गुणों का प्रत्यक्ष प्रमाण है भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा। यही नहीं,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण,मत्स्यपुराण,रामायण,महाभारत और गीता में भी भगवान जगन्नाथ महात्म्य का वर्णन है।भगवान जगन्नाथ की लीलाभूमि है पुरुषोत्तम क्षेत्र और उनकी लौकिक –अलौकिक लीलाओं का यथार्थ प्रमाण है-भगवान जगन्नाथ की प्रतिवर्ष अनुष्ठित आषाढ़ शुक्ल दवितीया को अनुष्ठित होनेवाली विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा जो विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है। जिस ओड़िशा को कभी उड्र देश भगवान जगन्नाथ के लिए कहा गया। जिस ओड़िशा को उत्कृष्ट कलाओं का प्रदेश कहा गया उसी सांस्कृतिक प्रदेश के भगवान जगन्नाथ का श्रीमंदिर उत्कल स्थापत्य और मूर्तिकला का बजोड़ उदाहरण है जिसके रत्नवंदी पर विराजमान हैं महाप्रभु जगन्नाथ चचुर्धा दारुविग्रह रुप में,चारों वेदों के जीवंत स्वरुप के रुप में।
भगवान जगन्नाथ दारुब्रह्म के रुप में तथा ब्रह्मदारु के रुप में प्रतिदिन स्वरुचि से नये-नये परिधान धारण करते हैं।अपना श्रृंगार करते हैं।56 प्रकार के अन्न के भोग को ग्रहण करते हैं। ओडिशी गायन सुनते हैं।भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। अपने सालमेग जैसे भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।इस सृष्टि के पालक के रुप में तथा इस सृष्टि के पालनहार के रुप में विश्व संस्कृति के प्राण बनकर मानवता की रक्षा करते हैं उनकी मानवीय लीला रथयात्रा निर्विवाद रुप में विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृति महोत्सव है।
पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धियात्री होती है। कहने के लिए तो यह महोत्सव मात्र एक दिन अर्थात् आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी धाम के बड़दाण्ड(चौड़ी सड़क) पर अनुष्ठित होता है लेकिन सच्चाई यह है कि प्रतिवर्ष वसंतपंचमी(सरस्वती पूजा) के दिन से ही नये रथों के निर्माण के लिए दारु(पवित्र काष्ठ्य संग्रह कार्य आरंभ हो जाता है और रथयात्रा का वास्तव में समापन आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन होता है।
2025 की रथयात्रा के लिए 03 फरवरी,वसंत पंचमी(सरस्वती पूजा) के दिन से रथ निर्माण हेतु काष्ठ्य संग्रह का पवित्र कार्य आरंभ हुआ।अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को थी जिस दिन से नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ हुआ।रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के श्रीमंदिर के सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पांच तत्वों से मानव शरीर का निर्माण होता है ठीक उसी प्रकार पांच तत्वःकाष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावटी सामग्रियों से भगवान जगन्नाथ आदि देवों के रथों का निर्माण होता है।
अक्षय तृतीया के दिन से ही जलप्रिय भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में आरंभ हुई थी। आगामी 12 जून को देवस्नान पूर्णिमा है।उस दिन चतुर्धा देवविग्रहों को क्रमशः भगवान जगन्नाथ को 35 स्वर्ण कलश पवित्र व शीतल जल से,33 स्वर्ण कलश पवित्र और शीतल जल से बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल से माता सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल से सुदर्शन भगवान को,कुल 108 स्वर्ण कलश शीतल और पवित्र जल से
श्रीमंदिर के देवस्नानमण्डप(जो सिंहद्वार के सटा हुआ है।) पर मलमलकर महास्नान कराया जाएगा।उन्हें गजानन वेष में सुसज्जित किया जाएगा। अत्यधिक स्नान करने के कारण चतुर्धा देवविग्रह बीमार पड़ जाते हैं और उनको उनके बीमार कक्ष में अगले 15 दिनों तक रखकर उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार होता है। उन 15 दिनों के दौरान जो भी देश-विदेश के जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आते हैं वे श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं क्योंकि श्रीमंदिर का पाट चतुर्धादेव विग्रह के बीमार होने के कारण बंद कर दिया जाता है। उस दौरान पुरी आने आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्त पुरी से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मगिरि में जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन करते हैं जो भगवान जगन्नाथ के ही वास्तविक स्वरुप हैं।भक्तगण ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ को निवेदित किए जानेवाली खीरभोग को बड़े चाव से ग्रहण करते हैं।
रथयात्रा के एक दिन पूर्व भगवान जगन्नाथ का नवयौवन दर्शन होता है। 2025 वर्ष की भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आगामी 27 जून को है। उस दिन श्रीमंदिर के रत्नवेदी से पहण्डी विजय कराकर चतुर्धा देवविग्रहों को रथारुढ़ करा दिया जाता है। पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी महाराजा अपने राजमहल श्रीनाहर से सफेद वस्त्र धारणकर पालकी में आते हैं और तीनों ही रथों पर चंदनमिश्रित जल छिड़कर सोने की मूठवाली झाड़ू से रथों को पवित्र करते हैं। गजपति महाराजा के इस दायित्व को जगन्नाथ संस्कृति में छेरापहंरा कहते हैं।श्री पुरी गोवर्द्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के संग आकर रथयात्रा की सुव्यवस्था देखते हैं तथा तीनों ही रथों पर जाकर अपना आत्मनिवेदन अर्पित करते हैं।
रथयात्रा में सबसे आगे चलता है तालध्वज रथ,उसके उपरांत चलता है देवदलन रथ और सबसे आखिरी में गुण्डीचा घर के लिए चलता है भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष रथ।2025 वर्ष की बाहुड़ा यात्रा(गुण्डीचा मंदिर से वापसी श्रीमंदिर यात्रा) आगामी 05 जुलाई को है।सोनावेष आगामी 06 जुलाई को है,अधरपणा आगामी 07जुलाई को है तथा नीलाद्रि विजय आगामी 08 जुलाई को है।
यह शास्वत सत्य है कि भगवान जगन्नाथ अपने जिस भक्त को अपने दर्शन के लिए बुलाते हैं वे ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी धाम आते हैं।कहते हैं कि रथारुढ़ भगवान के जो एकबार दर्शन कर लेता है उसे पुनः मोक्ष की कामना नहीं होती है और इसीलिए तो भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव माना जाता है जिसके आयोजन में पूरी ओड़िशा प्रदेश सरकार,पुरी श्रीमंदिर प्रशासन तथा स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन का भी पूर्ण सहयोग रहता है।
भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा को गुण्डीचा यात्रा, पतितपावन यात्रा,जनकपुरी यात्रा, घोष यात्रा,नव दिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा भी कहा जाता है। इन सभी नामों की सार्थकता ही भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा को विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक महोत्सव के रुप में करतीं हैं। वैसे भी भगवान जगन्नाथ जगत के नाथ हैं।वे विश्व मानवता के स्वामी हैं। वे विश्व मानवता के केन्द्र बिन्दु हैं। वे अपने दारुविग्रह रुप में तथा देवदारु विग्रह रुप में सौर हैं, वैष्णव हैं, शैव हैं, शाक्त हैं, गाणपत्य़ हैं, बौद्ध हैं और जैन हैं। वे सभी धर्मों और सम्प्रदायों के जीवंत विग्रह देव समाहार हैं।वे कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं। वे अवतार नहीं अवतारी हैं।वे 16 कलाओं से सुसज्जित हैं। वे अपने चतुर्धा देव विग्रह स्वरुप में चारों वेदों के जीवंत स्वरुप हैं।वे आस्था एवं विश्वास के देव हैं। वे अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के द्वारा विश्व मानवता को शांति,एकता तथा मैत्री का पावन संदेश देते हैं। श्रीजगन्नाथ पुरी धाम वास्तव में एक धर्मकानन है जो देखने में शंख की आकृति के रुप में दिखाई देती है इसीलिए इसे शंखक्षेत्र भी कहते हैं।यह पुरुषोत्तम क्षेत्र है जहां पर आदिशंकराचार्य महाभाग, चैतन्य, रामानुजाचार्य, जयदेव, नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक कवि, संत-महात्मा और अनन्य जगन्नाथ भक्त महाप्रभु की इच्छा से आये और भगवान जगन्नाथ की लौकिक और अलौकिक महिमा को स्वीकार कर उनके आजीवन अनन्य भक्त बन गये।भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा वास्तविक श्रद्धा,भक्ति,आस्था, प्रेम, आत्मनिवेदन, करुणा,विश्वास का विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है जो हमें समस्त अहंकारों के त्याग का संदेश देता है।इसप्रकार भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा पूरी तरह से विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें भगवान जगन्नाथ द्वारा अपने भक्तों के लिए सच्ची भक्ति,आस्था,विश्वास,दर्शन,ज्ञान,त्याग,समर्पण,दिव्य लौकिक-अलौकिक लीलाओं के दर्शन होते हैं।

अशोक पाण्डेय

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