-अशोक पाण्डेय
———————-
सनातनी सुदीर्घ परंपराओं में परिवार को सामाजिक गुणों की पहली पाठशाला माना गया है क्योंकि हमारे संस्कार और जीवन मूल्य संयुक्त परिवार से ही आरंभ होते हैं। भगवान जगन्नाथ इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। वे अपनी रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जब करते हैं तो सबसे पहले अपने बड़े भाई बलभद्र जी को आगे करते हैं। अपनी लाड़ली बहन सुभद्रा को बीच में रखते हैं और सबसे आखिर में स्वयं निकलते हैं। मान्यवर, पत्नी तो आपकी सहचरी, संगिनी और प्रेरणा अवश्य है लेकिन इस बात का भी ध्यान अवश्य रखें कि बड़े भाई मार्ग दर्शन और लाड़ली बहन की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी आपकी ही है।
-अशोक पाण्डेय