-अशोक पाण्डेय
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बात अगस्त,1986 है। मैं भुवनेश्वर में सबसे पहले जगन्नाथ संस्कृति के मर्मज्ञ स्वर्गीय गौरी कुमार ब्रह्मा जी से मिला। उनके प्रथम दर्शन ने ही मुझे भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए अनुप्रेरित कर दिया। वे जगन्नाथ जी के नाम का स्मरण करते थे और आनंदातिरेक में आंसू बहाने लगते थे। मैंने उनके साथ दूरदर्शन के रथयात्रा के सीधे प्रसारण में भी बैठता था, हिन्दी में कमेंट्री देता था। जब स्वर्गीय गौरी कुमार ब्रह्मा जी जगन्नाथ भगवान की पहण्डी देखते थे अचानक भावुक हो जाते थे। कहते थे:”कालिया (जगन्नाथ) आ गया। उनकी वाणी चुप हो जाती थी और उस वक्त माइक्रोफोन मैं लेकर रथयात्रा की हिन्दी में कमेंट्री करता था। समस्त जगन्नाथ भक्तगण, भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से ब्रह्मानंद , परमानंद, आत्मानंद, निजानंद और आध्यात्म आनंद की अनुभूति स्वत: हो जाती है।
जगन्नाथ स्वामी नयनपथगामी भवतुमे!
-अशोक पाण्डेय