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11जून को देवस्नानपूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ महास्नानकर गजानन वेष धारण करेंगे

– अशोक पाण्डेय

प्रतिवर्ष श्री जगन्नाथपुरी के श्रीमंदिर में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के पवित्र दिवस पर देवस्नान पूर्णिमा अनुष्ठित होती है जिसे भगवान जगन्नाथ का जन्मोत्सव भी कहा जाता है। इस वर्ष 2025 की देवस्नान पूर्णिमा 11जून को है।उस दिन भगवान जगन्नाथ महास्नान करेंगे और अपने गाणपत्य भक्त विनायक भट्ट की इच्छानुसार गजानन वेष धारण करेंगे। श्रीमंदिर प्रशासन पुरी से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष देवस्नान पूर्णिमा के आयोजन से संबंधित सभी तैयारियां पूरी कर लीं गई हैं।उस दिन भोर में श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रहों, जगन्नाथ जी, बलभद्रजी, सुभद्राजी और सुदर्शन जी को पहण्डी विजय कराकर सिंहद्वार के समीप अवस्थित देवस्नानमण्डप लाया पर जाएगा। श्रीमंदिर प्रांगण में ही अवस्थित माता विमला देवी के स्वर्ण कूप से 108 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल लाकर चतुर्धा देवविग्रहों को उनके देवस्नान मण्डप पर महास्नान कराया जाएगा। इस क्रम में 35 स्वर्ण कलश जल से जगन्नाथ जी को,33 स्वर्ण कलश जल से बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश जल से सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश जल से सुदर्शन जी को महास्नान कराया जाएगा। उन्हें मल-मलकर नहलाया जाएगा जिसे श्रीमंदिर के सिंहद्वार से बड़दण्ड(चौड़ी सड़क) से लाखों श्रद्दालु जगन्नाथ भक्त भगवान जगन्नाथ को मलमलकर नहाते देखेंगे।उसके उपरांत श्री जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेव जी महाराज अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में आकर छेरापंहरा का दायित्व निभाएंगे। महास्नान के उपरांत भगवान जगन्नाथ को उनके एक गाणपत्य भक्त विनायक भट्ट की इच्छानुसार उन्हें गजानन वेष में सुशोभित किया जाएगा। महास्नान करने के चलते देवविग्रह साधारण मानव की तरह बीमार प़ड जाएंगे और उन्हें एकांत उपचार के लिए उनके बीमार कक्ष में ले जाकर 15 दिनों तक रखा जाएगा। उनका वहां पर आयुर्वेदसम्मत विधि से इलाज किया जाएगा। उन 15दिनों तक श्रीमंदिर का कपाट भक्तों के दर्शन के लिए बन्द कर दिया जाएगा। उन दिनों पुरी धाम आनेवाले सभी भक्त जगन्नाथजी के दर्शन पुरी से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मगिरि में अवस्थित भगवान अलारनाथ के दर्शन के रुप में करेंगे। ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ की काले प्रस्तर की भगवान विष्णु की मूर्ति है जो देखने में बहुत ही सुंदर दिखती है। भगवान अलारनाथ को निवेदित होनेवाली खीर भोग को जगन्नाथ भक्त बडे चाव से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। यहीं पर आकर ब्रह्माजी ने भी कभी तपस्या की थी।ऐसी मान्यता है कि चैतन्य महाप्रभु भी एक समय में ब्रह्मगिरि आकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किए थे। ब्रह्मगिरि आज सैनानियों का स्वर्ग बन चुका है।आज ब्रह्मगिरि अलारनाथ मंदिर प्रशासन का सम्पूर्ण दायित्व ओड़िशा प्रदेश सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है जिसके चलते वहां की साफ-सफाई आदि की पूरी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है।
गौरतलब है कि ओडिशा प्रदेश की संस्कृति जगन्नाथ संस्कृति है जिसमें देवस्नान पूर्णिमा का अपना पौराणिक,आध्यात्मिक,लौकिक और सामाजिक महत्त्व भी है।एक तरफ भगवान जगन्नाथ जी भोजन प्रिय हैं,संगीत प्रिय हैं,वस्त्रधारण प्रिय हैं और भक्तप्रिय हैं ठीक उसी प्रकार वे जल प्रिय भी हैं।देवस्नानपूर्णिमा उनकी जलप्रियता का प्रत्यक्ष प्रमाण है और इसीलिए देवस्नानपूर्णिमा को जलप्रिय भगवान जगन्नाथ की जलयात्रा भी कहा जाता है।
-अशोक पाण्डेय

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