स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग
चन्द्रमौलीश्वर के साक्षात प्रतिरुप हैं श्री जगन्नाथपुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाभाग।आपका सनातनी शाश्वत संदेश है-“ एक सुसंस्कृत,सुशिक्षित,सुरक्षित,समृद्ध,सेवापरायण स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना में विश्व मेधा-रक्षा-वाणिज्य और श्रमशक्ति का उपयोग एवं विनियोग हो। विश्व को धर्मनियंत्रित,पक्षपातविहीन-सर्वहितप्रद शासन सुलभ कराने में सत्पुरुषों की प्रीति तथा प्रवृत्ति परिलक्षित हो।सेवा और सहानुभूति के नाम पर किसी वर्ग के अस्तित्व और आदर्श को विलुप्त करने के समस्त षडयंत्र विश्वस्तर पर मानवोचित शील की सीमा मंठ जघन्य अपराध उद्घोषित हो। विकास के नाम पर पर्यावरण को विकृत और विलुप्त करनेवाले समस्त प्रकल्प निरस्त हों। स्थावर,जंगम प्राणियों के हितों में पाश्चात जगत विनियुक्त हो। पृथ्वी,पानी,प्रकाश,पवन और आकाश सर्व शांतिप्रद और सुखप्रद हों।“ जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग पिछले लगभग 30 वर्षों से दिव्य गोवर्द्धन पीठ को सुशोभित कर रहे हैं। वे अपनी दिव्य मेधाशक्ति एवं दिव्य विद्यासागर के बदौलत भारतीय सनातनी परम्पराओं के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के शाश्वत जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए सद्गुरु,श्री जगन्नाथ और सद्ग्रंथ को ही मान्यता देते हैं। साक्षात भारतीय आध्यात्मिक चेतना के प्राण स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग पिछले लगभग 30 वर्षों से समस्त सांसारिक सुखों का त्यागकर भारतीय सनातनी शाश्वत आध्यात्मिक परम्पराओं,गंगा,रामसेतु,गोमाता तथा अयोध्या रामजन्मभूमि अभियान के सच्चे संरक्षक तथा मार्गदर्शक बने हुए हैं। प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी धाम में अनुष्ठित होनोवाली भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दिन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग अपने परिकरों से साथ गोवर्द्धन मठ से पधारकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के समीप खडे तीनों रथों तालध्वज,देवदलन तथा नंदिघोष रथों की सुव्यवस्था आदि का अवलोकन करते हैं तथा रथों पर जाकर रथारुढ़ चतुर्धा देवविग्रहों को अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं। जगतगुरु की भगवान जगन्नाथ जी से एक ही प्रार्थना रहती है कि पृथ्वी,पानी,प्रकाश,पवन और आकाश आदि शांतिप्रद और सुखप्रद हों तथा विश्वमानवता की रक्षा हेतु चारों तरफ शांति ही शांति हो।
-अशोक पाण्डेय