-अशोक पाण्डेय
भगवान जगन्नाथ की ऐश्वर्य लीला अर्थात् उनका सोना वेश आगामी 06जुलाई को है।जैसाकि सर्वविदित है कि बड़े ठाकुर भगवान जगन्नाथ नर रुप में नारायण हैं। वे पुरुषोत्तम क्षेत्र में साल के 365 दिनों में प्रत्येक दिन माधुर्य लीलाएं कर अपने मानवीय स्वरुप को स्पष्ट करते हैं क्योंकि वे विश्व मानवता के स्वामी हैं।वे ओड़िशा प्रदेश के आध्यात्मिक राजराजेश्वर हैं। राजाओं के राजा हैं। वे साल में एकबार रथारुढ़ होकर सोना वेश धारण कर अपनी वास्विक ओड़िया अस्मिता को स्पष्ट करते हैं।
आगामी 6जुलाई को तालध्वज,देवदलन तथा नंदिघोष रथ पर ही श्रीमंदिर के सिंहारी, पालिया, खुंटिया, भंडार मेकप, चांगड़ा मेकप सेवकों के द्वारा चतुर्धा देवविग्रहों को सोना वेश में सुशोभित कराया जाएगा। उस दिन वे ओड़िशा के आध्यात्मिक राजाधिराज होते हैं।रथारुढ़ होकर उनका सोना वेश धारण करना उनकी उनकी ऐश्वर्य लीला का जीवंत प्रमाण है। उस दिन श्रीमंदिर के रत्नभण्डार में रखे कुल लगभग बारह हजार तोले से भी अधिक सोने के अनेक आभूषण,हीरे-जवाहरात आदि से उनको सुशोभित किया जाएगा।चतुर्धा देवविग्रह रथारुढ़ उस दिन अपने दिव्य नख से दिव्य भाल(मस्तक) तक स्वर्णाभूषणों से सुशोभित होंगे।
जीव और ब्रह्म के निरुपाधिक धरातल पर एकत्व का द्योतक है-दारुब्रह्म शब्द और ब्रह्म और जीव के निरुपाधिक धरातल पर एकत्व का द्योतक है-ब्रह्मदारु शब्द। इसीलिए भगवान जगन्नाथ उस दिन सोना वेश में दारुब्रह्म तथा ब्रह्मदारु के प्रत्यक्ष प्रतीक रुप में सुशोभित होंगे।उस दिन नील मेघमण्डल के समान श्रीजगन्नाथ जी सोने के आभूषणों में और सुंदर लगते हैं।शंख तथा चन्द्रमा के समान श्री बलभद्रजी दीप्तिमई आभा में नजर आते हैं।कुमकुम के समान अरुणामई सुभद्राजी सोना वेश में जगतजननी रुप में नजर आएंगी तथा लाल वर्ण के सुदर्शनजी सोने के आभूषणों में सजे अति मोहक दिखेंगे।
श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के सोने वेश में सुशोभित किये जाने की परम्परा लगभग एक हजार वर्ष पुरानी परम्परा है। गौरतलब है कि जगन्नाथ को साल में सिर्फ एक बार ही जगन्नाथ मंदिर के बाहर रथ के ऊपर सोना वेश में सुशोभित किया जाता है।इसके अलावा पांच बार श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर चतुर्धा विग्रहों को सोना वेश में सजाया जाता है।वे पवित्र अवसर हैःकार्तिक पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा, डोल पूर्णिमा अथवा दशहरा तथा कुमारपूर्णिमा।
सोना वेश की परम्पराः
ओड़िशा के सूर्यवंशी शासकों ने भगवान जगन्नाथ के लिए कीमती आभूषण और सोना दान किया है।जगन्नाथ मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख में यह स्पष्ट रुप में लिखा है कि गजपति कपिलेंद्र देव ने 1466 ई. में भगवान जगन्नाथ को बड़ी मात्रा में सोने और रत्नों के आभूषण और बर्तन दान किया था।हलफनामे के अनुसार, भीतरी कक्ष में 50 किलो 600 ग्राम सोना और 134 किलो 50 ग्राम चांदी है।बाहरी कक्ष मंल 95 किलो 320 ग्राम सोना और 19 किलो 480 ग्राम चांदी है।
श्रीमंदिर प्रशासन पुरी से प्राप्त जानकारी के अनुसार आगामी 6 जुलाई को श्रीमंदिर में मंगल आरती, मइलम, तड़प लागी, अवकाश, वेश संपन्न, गोपाल बल्लभ भोग, सकाल धूप, महास्नान तथा सर्वांग वेश आदि नीति संपन्न होने के बाद चतुर्धा विग्रहों को सोने के वेश में उन्हें रथारुढ़ ही सजाया जाएगा।सिंहारी, पालिया, खुंटिया, भण्डार मेकप, चांगड़ा मेकप सेवायत उन्हें अनेक प्रकार के स्वर्णाभूषणों से सजाएंगे।
सोना वेष के प्रमुख आभूषणः
महाप्रभु जगन्नाथ को श्रीभुज, श्रीपयर, किरीट, चन्द्र, सूर्य, आड़कानी, घागड़माली, कदम्बमाली, तिलक, चन्द्रिका, अलका, झोबा कंठी, स्वर्ण चक्र तथा चांदी के शंख, हरिड़ा, कदम्ब माली, बाहाड़ा माली, ताबिज माली, सेवती माली, त्रिखंडिका, त्रिखंडिका कमरपट्टी आदि आभूषणों से सजाया जाएगा।
बलभद्र जी को श्रीपयर, श्रीभुज, कुंडल, चन्द्र,सूर्य, आड़कानी, घागड़ा माली, कदम्ब माली, तिलक, चन्द्रिका, अलका, झोबा कंठी, हल, एवं मुसल, बाहाड़ा माली, बाघनख, सेवती माली, त्रिखंडिका कमरपट्टी आदि आभूषण से सजाया जाएगा।
देवी सुभद्रा के विशेष आभूषणों में शामिल है-किरीट, कान, चन्द्र सूर्य, घागड़ा माली, कदम्ब माली, दो तगड़ी, सेवती माली आदि।
भगवान जगन्नाथ की माधुर्य लीला के तहत साल के 12 महीनों में कुल 13 उत्सव वे मनाते हैं। उनका प्रतिदिन विभिन्न वेश धारण करना,उनका 56 प्रकार का भोग ग्रहण करना तथा प्रतिदिन गीतगोविंद सुनना आदि शामिल हैं।सोना वेश दर्शन करनेवाले प्रत्यक्षदर्शियों का यह मानना है कि भगवान जगन्नाथ का सोनावेश दर्शन ही भक्त-जीवन की सार्थकता है जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने ऐश्वर्यमय स्वरुप में हृदय में विराजमान हो जाते हैं।
अशोक पाण्डेय









