Header Ad

Categories

  • No categories

Most Viewed

छठ महापर्वः एक अवलोकन

-अशोक पाण्डेय
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक पवित्र नदी,तालाब,पोखर,जलाशय और जलकुण्ड के तट पर छठ महापर्व मनाया जाता है।यह चार दिवसीय कठोरतम महापर्व नहाय-खाय, खरना,अस्ताचलगामी सूर्यदेव को प्रथम सायंकालीन अर्घ्य अर्पण तथा चौथे दिवस भोर में उदीयमान सूर्यदेव को भोर के अंतिम अर्घ्य अर्पण के साथ संपन्न होता है। 2025 का छठ महापर्व आगामी 25-28 अक्टूबर को है।यह चार दिवसीय कठोरतम व्रत आरोग्यमुक्ति, मनोवांछित मनोकामना पूर्ति,जीवन में असाधारण कामयाबी तथा पारिवारिक सुख-शांति व समृद्धि प्रदान करता है। इस चार दिवसीय महापर्व में प्रत्यक्ष देवता सूर्य भगवान,उनकी बहन छठ परमेश्वरी,जल और वायु की पूजा होती है। प्राप्त पुष्ट जानकारी के अनुसार छठ महापर्व के मनाने का आरंभ बिहार प्रदेश से हुआ था जहां के पवित्र गंगातट पर पहली बार सामूहिक छठ महापर्व मनाया गया था।इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है उलार्क सूर्य मंदिर,पटना,सूर्यमंदिर औरंगाबाद,सूर्यमंदिर गया ,सूर्यमंदिर नालंदा,सूर्यमंदिर बेलाउर,सूर्यमंदिर नवादा हंडिया और सूर्यमंदिर कंदाहा जहां पर छठ महापर्व मनाया जाता है। अब तो बिहार के सभी जिलों में छठ महापर्व मनाया जाता है। गौरतलब है कि औरंगाबाद के सूर्यमंदिर में तो चार दिवसीय महापर्व के आयोजन से संबंधित सभी संसाधन उपलब्ध हैं। जैसेः सूर्यमंदिर, पुष्करिणी,छठ का घाट,पूजा की सभी पूजनसामग्रि,चार दिनों तक ठहरे आदि की उत्तम व्यवस्था आदि।यही कारण है कि देश-विदेश के सैकड़ों छठव्रतधारी आकर उस मंदिर के प्रांगण में ठहरते हैं और पूरी आस्था और विश्वास के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व मनाते हैं। सूर्योपासन से पौराणिक आस्था भी जुड़ी हुई है। भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी छठ पूजन किया था। महाभारत काल में कुंती ने भी संतान प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया था। इसीलिए उनका पुत्र कर्ण सूर्यदेव का बहुत बड़ा भक्त था।द्रौपदी ने भी छठव्रत किया था। प्रियवंद नामक एक भक्त ने पुत्र प्राप्ति के लिए पहली बार छठ व्रत किया था। मान्यतानुसार महर्षि दुर्वासा ने जब श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब पर क्रोधित होकर उसे कुष्ठ होने का शाप दे दिया तब श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र साम्ब को यह सलाह दी कि वह ओड़िशा के कोणार्क सूर्यमंदिर में सूर्यपूजनकर वह शापमुक्त हो सकता है और साम्ब ने वही किया और सूर्योपासनाकर कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ। गौरतलब है कि भारत में सूर्यमंदिर गुजरात के मोढेरा में,उत्तराखण्ड के कटारमल में,कुमाऊं में,राजस्थान के रणकपुर में,असम के पहर में,उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में,कश्मीर के मार्तंड में,यूपी के महोबा में, मध्यप्रदेश के रहली,सागर में ,राजस्थान के झालावाड़ में,झारखण्ड के रांची के पहाडी पर और हिमाचलप्रदेश के नीरथ में निर्मित हैं जहां पर सूर्योपासना होती है और कमोबेस चार दिवसीय छठ महापर्व भी मनाया जाता है। ओड़िशा प्रदेश के राउरकेला, पारादीप, ताल्चर, कटक,जटनी,ब्रह्मपुर,संबलपुर,बरगढ़,बालेश्वर और भद्रक आदि शहरों में यह छठ महापर्व लगभग 1930 के दशक से ही पूरी लोक आस्था तथा विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। भुवनेश्वर में पहले केदारगौरी, चिंतामणीश्वर मंदिर, सीआरपीएफ समूह केन्द्र में यह महापर्व मनाया जाता था लेकिन अब तो पिछले लगभग तीन दशकों से पवित्र कुआखाई नदी तट तथा पिछले चार वर्षों से स्थानीय मंचेश्वर,बालीयात्रा मैदान के समीप कुआखाई पवित्र नदी तट पर यह महापर्व बिस्वास नामक पंजीकृत संस्था द्वारा मनाया जाता है। छठ महापर्व का प्रसाद ठेकुआ है जिसे छठ के घाट पर छठ व्रत के अंतिम दिवस भोर में छठव्रतियों वितरित किया जाता है। अब तो ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर और व्यापारी नगरी कटक में छठ के ठेकुआ प्रसादग्रहण करने की लालसा यहां के लोगों में सबसे अधिक होती है। चार दिवसीय छठ महापर्व भारतीय जनमानस को व्यक्तिगत स्वच्छता,पाकशाला की साफ-सफाई,घर-आंगन की साफ-सफाई,आस-पड़ोस की साफ-सफाई,स्वदेसी अन्न-फल जैसेः गेहूं,गन्ना,गाय का दूध-घी,केला,कन्दफल,बड़ा नींबू, शरीफा, अनानास,पूर्णफल नारियल,मूली और पानी सिंघाड़ा आदि ग्रहण करने का संदेश देता है।फलस्वरुप भारत के सभी मेट्रो सिटी में भी यह चार दिवसीय छठ महापर्व पूरी आस्था तथा विश्वास के साथ मनाया जाता है। छठ की पौराणिक,आध्यात्मिक और लौकिक मान्यता को स्वीकार करते हुए भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यूएन से छठ को विश्व धरोहर के रुप में मान्यता प्रदान करने की सिफारिश की है।
-अशोक पाण्डेय

    Leave Your Comment

    Your email address will not be published.*

    Forgot Password