









भुवनेश्वरः27 अक्टूबरः अशोक पाण्डेयः
बिस्वास,भुवनेश्वर के सौजन्य से प्रकृति, संस्कृति, संस्कार,लोक आस्था और अटूट विश्वास के चार दिवसीय महापर्वः छठ के तीसरे दिवस पर 27 अक्टूबर को शाम में मंचेश्वर न्यू बालीयात्रा प्रदर्शनी मैदान के समीप कुआखाआई नदी तक पर डूबते हुए सूर्यदेव और छठ परमेश्वरी को सायंकाल का पहला सामूहिक अर्घ्य दिया गया। गौरतलब है कि इस कठोरतम महापर्व का शुभारंभ बिहार प्रांत से ही हुआ था जो आज भारत के सभी महानगरों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आज का शाम छठघाट की सबसे रोचक दृश्य यह रहा कि छठ के घाट पर लगभग 20 छठव्रती महिला-पुरुष अपने-अपने घरों से भूईंपरी कर छठ के घाट आए और अर्घ्य दिये। आयोजन से जुड़ी सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि बिस्वास,भुवनेश्वर की महिला समिति तथा युवा शाखा ने मिलकर आयोजन को सफल बनाने में योगदान किया। कहते हैं कि यह छठ व्रत संतानप्राप्त,चर्मरोगों से मुक्ति तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए किया जाता है।कहते हैं कि श्रीकृष्ण के कुष्ठ रोग से शापग्रस्त पुत्र साम्ब ने ओड़िशा के कोणार्क सूर्यमंदिर के समीप सहस्त्र वर्षों तक सूर्यदेव का तपकर कुष्ठरोग से मुक्त हुआ था। यह भी जानकारी मिलती है कि सबसे पहले माता सीता ने छठव्रत किया था। कर्ण,कुंती और द्रौपदी ने भी छठव्रत किया था।कहते हैं कि भगवान सूर्यदेव इस सृष्टि के एकमात्र प्रत्यक्ष देव हैं जिनकी पूजा डूबते और उगते हुए दोनों रुपों में की जाती है। डूबते हुए सूरज की पूजा का संदेश यह है कि जिसके जीवन में पतन होता है उसका उत्कर्ष भी होता है।आयोजन को सफल बनाने में अध्यक्ष राजकुमार,उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह,सचिव अशोक भगत,कोषाध्यक्ष मणिशंकर ठाकुर समेत कार्यकारिणी के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों के अथक परिश्रम से हुआ। अध्यक्ष राजकुमार ने बिस्वास,भुवनेश्वर की ओर से स्थानीय पुलिस प्रशासन,प्रशासन तथा सभी मीडिया के प्रति आभार जताया है साथ ही साथ सभी छठव्रतियों से 28 अक्टबर को भोर में अंतिम अर्ध्य के लिए ठीक चार बजे आने का निवेदन किया है।
अशोक पाण्डेय









