भारत समेत पूरे विश्व में 21मईः इण्टरनेशनल चाय दिवस के रुप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। चाय की खेती करनेवालों से चाय उत्पादन संस्कृति को अपनाकर विश्व गरीबी अन्मुलन हेतु अधिक से अधिक सहयोग करने की उनसे अपेक्षा भी की जाती है। ओडिशा की स्मार्ट सिटी भुवनेश्वर स्थित विश्व के सबसे बडे आदिवासी आवासीय कीस डीम्ड विश्वविद्यालय,पूर्वी भारत के वर्ल्ड क्लास कीट डीम्ड विश्वविद्यालय के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपनी आत्मानुभूति में यह बताया कि यह जानकर उनको सुखद आश्चर्य हुआ कि साल में सिर्फ एक दिन 21मई को चाय दिवस के रुप में मनाया जाता है। बचपन से ही उनको चाय पीना पसंद है,स्वयं से चाय तैयार करना तथा अपने साथ-साथ अपने लोगों को भी चाय पिलाना उनको पसंद है। जीवन में चाय बनाकर पीने तथा दूसरों को पिलाने की आदत ही आज उनको टी-लवर बना दिया है। अपने जीनव की वास्तविक गाथा में उन्होंने पूर्व में भी यह बताया है कि उनका बाल्यकाल किसप्रकार से उनके घोर आर्थिक संकटों की कहानी रहा है। ओडिशा प्रदेश के अविभाजित कटक जिले के सुदूर तटवर्ती उनके कलराबंक गांव में उन दिनों उनके गरीब परिवार के लिए दूध की चाय तैयार करके पीने की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इसीलिए उनकी विवशता थी कि वे और उनका पूरा परिवार बिना दूधवाली चाय ही पीता था। ब्लेक टी पीता था।उन दिनों उनके नाश्ता के रुप में लाचारी मूडी-ब्लेक टी थी। सच कहा जाय तो उनके बचपन के दिनों में जब उनको भूख लगती थी तो वे वहीं चाय-मूडी ही उनका अपना भोजन भी था जिसे खाकर वे अपना पेट भरते थे। कभी-कभी तो रात के भोजन के रुप में भी वहीं चाय-मूडी खाकर वे लाचार होकर सो जाते थे। उनके बाल्यकाल में भोजन के रुप में चावल,दाल,सब्जी तथा रोटी आदि खाने की कल्पना करना भी उनके लिए असंभव था। इसीलिए चाय ही उनके लिए उनके बाल्यकाल के भरण-पोषण का एकमात्र सहारा था। उनकी स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत उन दिनों में 3-4ग्लास ब्लेक टी पीती थी और वे और उनके सभी भाई-बहन अपनी मां की टी पर सहयोगी रहते थे। उनका परिवार इतना गरीब था कि वे भोजन के अभाव में सिर्फ चाय पीकर ही सो जाते थे। सच कहा जाय तो उनके बचपन की घोर आर्थिक परिस्थितियां ही उनको जीने की सीख दी।। जैसे-जैसे वे बडे हुए चाय का चस्का और उसकी मात्रा भी धीरे-धीरे बढती गई।जब वे अपने हेल्थ बेनीफिट के लिए चाय के महत्त्व को समझे तो ब्लेक टी का स्थान दूधवाली चाय ने ले ली। जब वे अपने बुलंद इरादों,सत्यनिष्ठा,कठोर परिश्रम तथा आत्मविश्वास के साथ भुवनेश्वर में 1992-93 में अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपयों से कीट-कीस की स्थापना की तब वे लोगों की सहायता के लिए घर-घर घूमना आरंभ किये। अब वे एक-एक दिन में 20-25 कप दूधवाली चाय पीना आरंभ कर दिये। तभी से वे चायप्रेमी बन चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से प्रोफेसर अच्युत सामंत अपनी उम्र तथा स्वास्थ को ध्यान में रखकर प्रतिदिन मात्र 3-4 कप ही चाय पीते हैं। सच कहा जाय तो वे आजकल मिल्क टी कम तथा ब्लेक टी तथा ग्रीन टी अधिक लेते हैं।आज उनको मधुवाली चाय बहुत पसंद है जिसमें वे मंगलवार तथा शनिवार को छोडकर उनके लिए प्रतिदिन का नाश्ता भी वही चाय होती है।अबतो उन्हें अपनेआप पता चल जाता है कि उनके लिए चाय का समय कब हो गया है और उस वक्त स्वयं चाय तैयारकर पीते हैं तथा उस समय जो भी उनके दोस्त होते हैं उनको भी वे आदर सहित पिलाते हैं। विश्व के अपने लाखों,करोडों शुभचिंतकों को प्रोफेसर अच्युत सामंत यह बताना चाहते हैं कि वे अपने जीवन के अबतक के लगभग 56सालों में वे न ही कभी पान, न ही कभी सिगरेट और न ही कभी शराब आदि का टेस्ट लिये हैं। उनके विदेह आध्यात्मिक जीवन में चाय पीने की आदत ही उनके बाल्यकाल में उनकी भूखमरी को मिटाने के लिए उनकी आदत के रुप में लगी और आज वहीं उनकी बाल्यकाल की चाय पीने की आदत ही उनकी उम्र के बढने के साथ-साथ उनकी सहज स्वभाव बन चुकी है। उनके विषय में यह कहना कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कि आज उनके पारदर्शी और प्रेरणास्त्रोत आकर्षक व्यक्तित्व के विकास में चाय पीने की आदत उनके लिए नई ऊर्जा बनकर उनके संत स्वभाव जीवन की नव स्फूर्ति है। प्रतिदिन चाय बनाकर पीना और पीलाना ही आज प्रोफेसर अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन है।
अशोक पाण्डेय