-संकलनकर्ताः अशोक पाण्डेय
सच कहा जाय तो मानव-जीवन की सार्थकता मात्र चार अंकों में ही समाहित है क्योंकि ये चार अंक हरप्रकार से मानव के लिए शुभकारी,मंगलकारी तथा फलदायी हैं। सम्प्रति चल रहे श्राद्ध माह सितंबर,2021 में चार अंकों की महत्ता को जानना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि अपने पितरों को श्राद्ध देना। दिशाएं चार हैं-उत्तर,दक्षिण,पूर्व और पश्चिम। इनका निर्धारण पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा से होता है। युग चार हैं-सत्युग,त्रेता,द्वापर तथा कलियुग। मनुष्य के चार पुरुषार्थ हैं-धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष। धर्म के आधार भी चार हैं-सत्य,तप,दया और दान। श्राद्ध माह में इन चारों का विशेष महत्त्व है। हमारे वेद भी चार हैं-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद तथा अथर्वेद। हमारी सनातनी सामाजिक व्यवस्था में भी चार वर्ण हैं-ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र। चार आश्रम हैं-ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वाणप्रस्थ और संन्यास। हमारे 16 संस्कारों में विवाह-संस्कार सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है जिसमें भी चार फेरों का सफल गृहस्थ जीवन के लिए सबसे अधिक महत्त्व है। हमारे परम पूज्य भी चार हैं-मां,बाप,सद्गुरु और अतिथि। हमारे पूज्य ग्रंथ भी चार हैं-रामायण,गीता,श्रीमद्भागवत और महाभारत। मानव-जीवन में सत्य के साक्षात्कार के भी चार मार्ग हैं-ज्ञान,कर्म,भक्ति और योग। हमारे चार धाम हैं-श्री जगन्नाथ पुरी,द्वारका,रामेश्वरम् और बदरीनाथ धाम। भगवान विष्णु भी अपने चतुर्भुज रुप में चार आयुध धारण किये हैं- शंख,चक्र,गदा और पद्म। सबसे बडी बात राजनीति के भी चार ही मूल सूत्र हैं-साम,दाम,दण्ड और भेद। मानव-जीनव की सार्थकता बल,बुद्धि,विद्या तथा चरित्र में विनम्र होकर सुख,शांति तथा समृद्धि के साथ इस मृत्युलोक में पूरे आनन्द के साथ रहने में है। वैश्विक महामारी कोरोना-संक्रमण भले ही हो,फिर भी उससे डरना नहीं है। उससे तनावमुक्त होकर रहना है और पूरी साफ-सफाई के साथ स्वनियोजित जीवन जीना है। अगर समय मिले तो जीवन में चार अंकों के महत्त्व को अपनाने की कोशिश करनी है।
संकलनकर्ताः अशोक पाण्डेय