Header Ad

Categories

  • No categories

Most Viewed

“ कीस सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भर भी है। “ -प्रोफेसर अच्युत सामंत, संस्थापकःकीट-कीस तथा कंधमाल लोकसभा सांसद

प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त

विश्व के महान शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत, संस्थापकःकीट-कीस तथा ओडिशा कंधमाल लोकसभा सांसद ने आजाद भारत के 73वें गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर यह बताया कि “ कीस सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भर भी है। “ उनके अनुसार पिछले लगभग 28 वर्षों से निःशुल्क तथा उत्कृष्ट शिक्षा के माध्यम से कीस के लाखों आदिवासी बच्चे, युवा- युवती अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के माध्यम से स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बन चुके हैं।कीस सामाजिक न्याय की वह विश्व स्तरीय आदिवासी आवासीय पाठशाला है जहां पर गुरु-शिष्य एकसाथ रहते हैं।गुरुकुल परम्परा की तरह यथार्थ और आदर्श जीवन जीते हैं। समता,स्वतंत्रता तथा सामाजिक न्याय को अपनाकर कीस को आत्मनिर्भर बनाते हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत के अनुसार उनका कीट अगर एक कारपोरेट है तो कीस उसकी सामाजिक जिम्मेदारी है। आदिवासी सशक्तिकरण, महिला सशक्तिकरण, कन्याकिरन अभियान, सर्वशिक्षा अभियान तथा अपने जीवनदर्शनःआर्ट आफ गिविंग के माध्यम से वे निःस्वार्थ समाजसेवा तथा लोकसेवा करते हैं और प्रसन्न रहते हैं। सामाजिक न्याय के समर्थक तथा पक्षधर कीट-कीस के संस्थपाक प्रोफेसर अच्युत सामंत सामाजिक न्याय की कथनी में नहीं अपितु उसकी करनी में विश्वास रखते हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत जब मात्र चार साल के थे तभी उनके पिताजी का एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। वे अपने बाल्यकाल की घोर आर्थिक संकटों में पलकर आज कीट-कीस –कीम्स के माध्यम से सामाजिक न्याय को अपनाकर आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार कर रहे हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत के अनुसार सामाजिक न्याय बुनियाद रुप से भारत के सभी नागरिकों को एक समान मानने पर आधारित है। सामाजिक न्याय के अनुसार भारत के किसी भी नागरिक के साथ सामाजिक,धार्मिक तथा सांस्कृतिक भेदभाव नहीं होना चाहिए। भारत के प्रत्येक नागरिक के पास जीवन और जीविका के लिए इतने न्यूनतम संसाधन अवश्य होने चाहिए जिससे वह उत्तम जीवन जी सके। कीस उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। प्रोफेसर सामंत का यह कहना है कि मानव-प्रेम और सामाजिक न्याय दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों में कोई अंतर नहीं है। प्रेम उनलोगों से हमारे रिश्तों का एक पहलू है जिन्हें हम अच्छी तरह से जानते हैं जबकि सामाजिक न्याय का संबंध समाज में हमारे जीवन और सार्वजनिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों तथा तरीकों से जुडा है। प्रोफेसर सामंत के अनुसार जिसप्रकार यूनानी विचारक प्लेटो तथा अरस्तु के दर्शन से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का उल्लेख मिलता है, ठीक उसी प्रकार सामाजिक न्याय की आधुनिक अवधारणा न्याय के नैतिक तथा नीतिपरक सिद्धांत पर समान रुप से आधारित है। प्रोफेसर सामंत डा.भीमराव अम्बेडकर के उस विचार का समर्थन करते हैं जिसमें अम्बेडकर ने कहा है कि राजनीतिक लोकतंत्र भारत के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत को एक राष्ट्र और देश के रुप में जीवित रखने के लिए उसे सामाजिक लोकतंत्र में तब्दील करने की जरुरत है जैसाकि वे कीस को बनाये हैं। उन्होंने राजनीतिक लोकतंत्र में सामाजिक लोकतंत्र के होने का समर्थन किया। प्रोफेसर सामंत के अनुसार स्वतंत्रता को कभी भी समानता से अलग नहीं किया जा सकता है। उनके अनुसार सामाजिक न्याय एक नैतिक आदेश को स्थापित करता है। वे भारतीय समाज को समतावादी समाज के रुप में देखना चाहते हैं जैसाकि वे कीस को बनाये हैं। उन्होंने गांधीजी के कथन- कर्तव्यों के हिमालय से अधिकारों की गंगा प्रवाहित होती है।–का पूर्ण समर्थन किया और यह बताया कि कीस पिछले लगभग 28 वर्षों से सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भरता का साक्षात प्रमाण है जहां पर जिम्मेदार नागरिक तैयार किये जाते हैं। चरित्रवान तथा कर्तव्य परायण मानव गढे जाते हैं। इसीलिए निर्विवाद रुप से कीस वास्तव में आधुनिक तीर्थस्थल है जहां पर प्रोफेसर अच्युत सामंत के कुशल मार्गदर्शन में सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भर मानव तैयार होते हैं।इसीलिए कीस आज भारत का दूसरा शांतिनिकेतन है जहां के सामाजिक न्याय तथा आत्मनिर्भर कीस को देखने के लिए पूरा विश्व आता है। गौरतलब है कि प्रोफेसर अच्युत सामंत ने 1992-93 में अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक किराये के मकान से कीट-कीस की शुरुआत की थी जो आज उनकी दोनों शैक्षिक संस्थाएं दो डीम्ड विश्वविद्याल बन चुकी हैं। एक है-कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर तथा दूसरी है-कीस डीम्ड विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर। आज प्रोफेसर अच्युत सामंत का कीस डीम्ड विश्वविद्यालय दुनिया का प्रथम डीम्ड विश्वविद्यालय बन चुका है जहां पर सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भर कीस की अवधारणा पिछले लगभग 28 सालों से आजाद भारत को सामाजिक न्याय के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत के मार्ग को प्रशस्त कर रही है।
अशोक पाण्डेय

    Leave Your Comment

    Your email address will not be published.*

    Forgot Password