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“ अंतर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंगः जन-जन के लिए प्रेम तथा सामाजिक आंदोलन का य़थार्थ पैगाम है “

प्रस्तुतिःअशोक पाण्डेय
राष्ट्रपति पुरस्कारप्राप्त
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित दो शैक्षिक संस्थानों-कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन-दर्शन है- आर्ट आफ गिविंग(देने की कक कला कला)जिसकी शुरुआत उन्होंने 17मई,कला जिसकी शुरुआत उन्होंने अपनी 2013 की अपनी बैंगलुरु यात्रा से की थी। 9वीं अंतर्राष्ट्रीय आर्ट गिविंग आफ गिविंग समारोह भुवनेश्वर में 17मई, दिवस 17 मई,2022 दिवस पहली बार 17मई,2022 को भुवनेश्वर में आयोजित किया था जिसे ओडिशा के महामहिम राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल ने बतौर मुख्य अतिथि जन-जन के लिए प्रेम का पैगाम तथा एक यथार्थ सामाजिक आंदोलन के रुप में अपने संदेश में बताया जिसकी आज समाज को आवश्यकता है। 2022 में लगभग 100 देशों के करोडों लोगों ने इसे स्वेच्छा से अंतर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग दिवस के रुप में मनाया। जिसप्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने जगत को प्रेम के संदेश देने की कला बताई। गांधीजी ने भारत को आजाद कराने के लिए सत्य,कराने के लिए सत्य,कराने के लिए सत्य,कराने के लिए सत्य,अहिंसा और त्याग का अमोघ अस्त्र-सशस्त्र दिया ठीक उसी प्रकार प्रोफेसर अय्चुत सामंत ने पूरे विश्व में शांतिको करुणा, दया, प्रेम, सहानुभूति,परोपकार,शांति-अमन-चैन,शांति,शांति,शांति अमन चैन भाईचारा सहयोग प्रेम और विश्वकल्याण के लिए अंतर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग जैसा अपना जीवन-दर्शन दिया। प्रोफेसर अच्युत सामंत का शैशव काल घोर गरीबी के बीच व्यतीत हुआ।
1992-93 में एक किराये के मकान में उन्होंने अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से कीट-कीस की स्थापना की। श्री जगन्नाथ भगवान तथा हनुमान जी की असीम अनुकम्पा से प्रोफेसर अय्युत सामंत द्वारा स्थापित कीट-कीस आज दो डीम्ड विश्वविद्यालय बन चुके हैं। कीस डीम्ड विश्वविद्यालय तो विश्व का सबसे बडा आदिवासी आवासीय डीम्ड विश्वविद्यालय है जिसे आधुनिक तीर्थस्थल कहा जाता है। वह कीस आज भारत का दूसरा शांतिनिकेतन है जहां पर चरित्रवान,जिम्मेदार,पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा केन्द्र बन चुका है जहां पर ईमानदार तथा सच्चे मानव का निर्माण होता है। करुणा,दया और मानवता को प्रोत्साहित किया जाता है। सच कहा जाय तो महान शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत का बाल्यकाल आर्थिक संकटों का दुर्भाग्यपूर्ण काल था। दिसके जिसमें उनको नफरतों,तिरस्कारों,उपेक्षाओं तथा परेशानियों का समय था। इसीलिए प्रोफेसर सामंत ने अपने बाल्यकाल से ही यह संकल्प ले लिया था कि वे आजीवन दीन-दुखियों की सेवा करेंगे। सामाजिक विकास से वंचित तथा उपेक्षित आदिवासी बच्चों को अपनी ओर से निःशुल्क केजी कक्षा से पीजी कक्षा तक उत्कृष्ट शिक्षा देंगे। लाखों –करोडों आदिवासी बच्चों को अपनी शैक्षिक क्रांति के माध्यम से उन बच्चों को अपने जैसा निःस्वार्थ समाज सेवी बनाएंगे।स्वावलंबी बनाएंगे। प्रोफेसर अय्चुत सामंत से जब यह पूछा गया कि उन्होंने अपने वास्तविक जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग को क्यों आरंभ किया तो उन्होंने मुसकराते हुए कहा कि वे अपने जीवन के अनुभव से यह कह सकते हैं कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति लेना चाहता है,देना कोई नहीं चाहता है। उनके पास भी लाखों आते हैं,वे सभी लेना चाहते हैं,देना कोई नहीं चाहता है। उनके अनुसार देने की कला एक विशिष्ट आध्यात्मिक कला जिसे वे अपने बाल-कालसंस्कार से अपनी स्व. माताजी,-पिता,भाई-बहन आदि के साहचर्य से आता है। देने में प्रोफेसर सामंत को सहृदयता, उदारता, आत्मीयता, परोपकार, करुणा, दया, सहानुभूति दानशीलता तथा निहित होती हैं। इसमें दाता यथाशक्ति अन्न,वस्त्र,प्रसन्नता का अहसास होता है।

अशोक पाण्डेय

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