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लोक अस्था का चार दिवसीय कठोरतम महापर्वः छठ-22

-अशोक पाण्डेय
लोक आस्था का चार दिवसीय कठारतम महापर्व छठ का अपना एक पौराणिक,सामाजिक तथा व्यक्तिगत महत्त्त्व है। इसे सूर्योपासना का महापर्व भी कहा जाता है। इसे सूर्यदेव की बहन छठ परमेश्वरी की पूजा का पर्व भी कहा जाता है।बिहार के औरंगाबाद जिले में पूरे भारत का इकलौता छठ पूजा मंदिर भी है जहां पर छठव्रती पहले दिन नहाय-खाय,दूसरे दिन खरना,तीसरे दिन शाम को भगवान सूर्यदेव को सायंकालीन पहला अर्घ्य देते हैं तथा चौथे दिन भोर में उगते हुए सूर्यदेन को अंतिम अर्घ्य देकर पारन करते हैं अर्थात् अपना व्रत तोडते हैं।इस वर्ष-2022 में 28अक्तूबर को नहाय-खाय है।29अक्तूबर को खरना है। 30 अक्तूबर को सूर्यदेव को पहला सायंकालीन अर्घ्य है तथा 31अक्तूबर को भोर में सूर्यदेव को अंतिम अर्घ्य है।अनादिकाल से बिहार में छठ बडे आकार में गंगा नदी जैसे अनेक पवित्र नदियों के तट पर मनाया जाता है। छठ व्रतधारण करनेवालों को छठ परमेश्वरी संतान का आशीष देती हैं। चर्मरोगी को चर्मरोगों से मुक्त करतीं हैं। कुमारी कन्याओं को सुंदर,कुलीन तथा धनवान पति का आशीर्वाद देतीं हैं।सभी छठव्रतियों की मनोकामना भगनान सूर्यदेव तथा उनकी बहन छठ परमेश्वरी अवश्य पूरी करतीं हैं। महाभारत काल में कुंती ने संतानप्राप्ति के लिए छठ व्रत किया था।इसीलिए उनका पुत्र कर्ण बहुत बडा सूर्यदेव का भक्त था।द्रौपदी ने भी छठव्रत की थी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और सीता ने भी छठ पूजा की थी। एक भक्त प्रियवंद था जिसने पुत्र प्राप्ति के लिए पहली बार छठ पूजा किया था और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी।ओडिशा में भी लगभग चार दशकों से छठ पूजा घर-घर तथा सामूहिक तौर पर ओडिशा के पवित्र नदी तट पर मनाया जाता है।छठ के अवसर पर छठ गीत का विशेष महत्त्व होता है-कांच बी बांस की बहंगिया,बहंगी लचकत जाय,बहंगी छठ घाट जाय।छठ का ठेकुआ प्रसाद ग्रहण करने से सभी प्रकार की मनोकामना पूरी हो जाती है। ओडिशा के कोणार्क के सूर्यमंदिर का भी विशेष महत्त्व है।सच कहा जाय तो भारतीय पर्व-त्यौहारों की परम्परा में छठ का अपना विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि यही एक मात्र सूर्योपासना का प्रकृति पर्व है,लोक आस्था का महापर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।
अशोक पाण्डेय

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