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देवी भागवत का तीसरा दिवस

मां की आराधना से बढ़ता है विश्वास* श्री श्रीकांत जी शर्मा (बाल व्यास)

भुवनेश्वर,5जून, अशोक पाण्डेय:
स्थानीय राम मंदिर यूनिट-3 में चल रही देवी भागवत के तीसरे दिवस पर कथाव्यास श्रीकांत शर्मा ने बताया कि सत्य के तेज से ही सूरज चमकता है धरती चलती है सत्यम आप सदैव सत्य रहता है सत्य जब तक किताबों में कैद रहता है तब तक बुझा हुआ दीपक रहता है यूं कहे बिना सुगंध का फल रहता है लेकिन वही सत्य जीवन में उतर जाता है तो मां की वीणो की झंकार हो जाता है क्यों की वैसा तभी संभव हो पाता है जब मां की उंगलियां अपने स्नेहिल भाव से जीव को सहलाने में क्रियाशील हो जाती है। यह विचार व्यास जी ने मां की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि संसार में किसी कार्य की सिद्धि के लिए मुख्यतः तीन तत्व होते हैं प्रथम इच्छाशक्ति द्वितीय ज्ञान शक्ति और तृतीय क्रियाशक्ति मन में किसी के संदर्भ में ज्ञान होने के बाद उसे पाने की इच्छा होती है। इसलिए मां भगवती दुर्गा को क्रियाशक्ति माना जाता है। सात्विक आहार के साथ नवरात्र रखने नित्य मां का भजन करने मात्र से जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है ।जीवन में निर्भयता और विश्वास को बल मिलता है भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण को जो भी जीवन में सफलता मिली वह सब मां सीता और मां रुकमणी द्वारा मां भगवती की उपासना आराधना के फलस्वरूप ही मिली ।उन्होंने कहा कि रावण को भगवान श्रीराम ने बध किया लेकिन उसके वंश का विनाश नहीं हुआ दस मुख वाला रावण मरा तो जरूर किंतु सत्य वाले रावण का अंत नहीं हुआ उसके लिए भगवान श्रीराम को मां की शक्ति की आराधना करनी पड़ी और एक सौ आठ कमल वाले की आराधना से पसंद मां की कृपा से ही शत मुख रावण का सवनिवाण उन्हें मारने में भी मां का ही सहयोग रहा। जग में आस्था से बड़ी कोई शक्ति नहीं और निष्ठा से बड़ा कोई बल नहीं मां भगवती के प्रति निष्ठा का होना जरूरी है देवी भागवत कथा के प्रत्येक श्लोक में जीवन को सार्थक और आनंदमय बनाने का गुण निहित है तो जग कल्याण के सूत्र भी है मां गले लगा ले तो डर रह नहीं जाता इसलिए कहता हूं कि सुबह मां का आशीर्वाद लेकर ही निकले कल्याण ही कल्याण होगा। निवँल के बल राम यह व्यक्ति के लिए एक सहारा हो सकता है लेकिन मेरा मानना है कि निर्वल होना अपराध है जबकि निर्मल होना मां भगवती की प्राप्ति है दुनिया में पुण्य पाप कर्म के अलावा व्यथँ कर्म भी होता है। राजा हरिश्चंद्र ने कभी सत्य का साथ नहीं छोड़ा इसलिए मां भुवनेश्वरी ने भी उनके हिस्से यस और कृति को बरकरार रखा कहने का अभिप्राय यह है कि हर हाल में जो मां के प्रति नतमस्तक होता है उसका कल्याण होना तय है संसार के सारे लोग मिलकर इतना पाप नहीं कर सकते जितना मां का नाम पापनाश कर सकता है कौवा पीपल का बीज खाकर विष्ठा करता है फिर भी पीपल जैसा शुभ वृक्ष पैदा होता है कमल कीचड़ में होता है झूठ टोलिया महापुरुष संघ से नहीं बदलते दुष्ट कौवे के विष्ठा करने से मंदिर का गुंबद अपवित्र नहीं होता ठीक इसी तरह निंदा से महापुरुष नहीं घबराते ठीक इसी तरह संसार स्वार्थ पर टिका है लोभी पुत्र सोचता है पिता परलोक जाए मेरे मनोरथ पूर्ण हो स्वार्थी पिता सोचता है बेटा सयाना हो तो कुछ कमा के लाए। कामना मां भगवती में लगाओ, वासना छूट जाएगी। उन्होंने देवी भागवत की कथा श्रवण को जीवनोपयोगी बताया। उन्होंने यह भी बताया कि राजा सिर्फ युद्ध कर सकता है लेकिन ब्राह्मण क्षमा कर सकता है। साथ ही साथ ओम् मंत्रोच्चारण की भी उन्होंने श्रोताओं से अपील की। अवसर पर प्रस्तुत राजा जनक की झांकी प्रेरणादायक रही। आयोजन पक्ष की ओर से नीलम अग्रवाल, अध्यक्षा, मारवाड़ी महिला समिति भुवनेश्वर ने सभी से कथाश्रवण हेतु प्रतिदिन आने का आग्रह किया।
अशोक पाण्डेय

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