श्रीमद् देवी भागवत संसार की जलन से शांति दिलाने वाला ग्रंथ है । संसार जल रहा है और इससे शांति परमात्मा ही दे सकता है, वह सर्वत्र व्याप्त है परमात्मा पास भी है और दूर भी है । वह सारे संसार में है और संसार उसमें है, ब्रह्म सब में विद्यमान है और राम तथा श्री कृष्ण वर्तमान है यह सब में रहते हैं लेकिन दिखाई नहीं पड़ते परमात्मा स्वयं प्रकाश है। सब कुछ उन्हीं से प्रकाशित होता है जब कहीं से प्रकाश नहीं मिले तो अपनी आत्मा से प्रकाश लेना चाहिये। सत्संग कीर्तन और महापुरुषों से प्रकाश मिलता है उस प्रकाश में मां मुंबा देवी के दर्शन होते हैं। इसलिए सत्संग भजन और कीर्तन में लगे रहो कोई न कोई संत महापुरुष आयेगा और जीवन में रोशनी दे जाएगा । साधना नियम के साथ होनी चाहिए जिस तरह से जल की पतली धार पत्थर को तोड़ देती है उसी तरह से नियम के साथ की गई साधना अहम के पत्थर को तोड़ कर श्री महालक्ष्मी जी की दर्शन कराती है । श्री श्रीकांत शर्मा जी ने कहा कि जिंदगी में नृत्य प्रकाश लाओ यही रास्ता परम्बा भगवती राजराजेश्वरी का दर्शन कराता है। आंखों में आंसू आते ही मां उसे पूछने के लिए दौड़ते हुए आएंगे बस इसी बात का ध्यान रखो कि वे आंसू स्वार्थ के आंसू नहीं होने चाहिए । रोना हो तो भगवती मां के लिए रो । शिवाजी ने समर्थ गुरु रामदास के चरणों की धूलि भी संत महापुरुषों की चरण धूलि लेने के साथ ही अध्यात्मिक की यात्रा शुरू हो जाती है। मुंबा देवी से मांगना हो तो फिर सांसारिक चीजें क्या मांगना उनसे इति, रति ,मति एवं गति की मांग कर सर्वस्य प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करें।
भीष्म पितामह की तरह भक्ति कर उन्हीं की तरह वर मांगो उन्होंने कहा कि भीष्म पितामह बान कि सैया पर लेट कर भी श्रीकृष्ण से उपरोक्त चारों वरदान मांगा जिससे उनकी अंतिम गति वासुदेव कृष्ण के सामने हुई । सत्संग की महिमा का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि सत्संग से प्रभु की प्राप्ति होती है । पूर्व जन्म में क्या थे सत्संग और प्रभु के संपर्क से यह सब समाप्त हो जाता है ,जैसे मत्स्यगंधा से कमल गंधा बन गई सत्यवती ,ठीक उसी प्रकार सत्संग में शामिल होने से मनुष्य के अंदर से काम क्रोध मद लोभ आदि का लोप हो जाता है । जिस तरह बीज से वृक्ष होकर लोकमंगल करता है अपने फल फूल पत्ते और लकड़ी से समाज को जीवन शक्ति देता है मां भी अपने बच्चे को संसार देकर परिपक्व बनाती है जो सुख में संसार का निर्माण करता है अभिप्राय यह है कि मां ही वह महाशक्ति है जो समाज को कुम्हार की तरह जैसा चाहती है बनाती है। अपने रक्तबीज से सूर्य की तरह उज्जवल को व आत्मा की तरह निर्मल संतानों को उत्पन्न कर समाज को संबोधित व सामर्थ्यवान बनाती है ताकि विश्व का कल्याण हो सके मां के महामंत्र से ही महानता को प्राप्त किया जा सकता है यह एक साथ सरस्वती लक्ष्मी महाकाली व सच्चिदानंदमयी मां की संयुक्त कृपा प्रदान करता है इससे साधक को इतनी ताकत मिल जाती है कि वह सर्वसामथयवान हो जाता है। ब्यास जी ने कहा कि प्रभु को तीन रास्तों से प्राप्त किया जा सकता है। पहला तेज़ जो माता-पिता की सेवा करने से मिलता है । उन्होंने कहा कि गृहस्थ आश्रम में रहने वाले मनुष्य अगर भाऊ में जाकर प्रभु के लिए रोते हैं तो वह मनुष्य साधु बन जाता है । पौराणिक कथा के अनुसार सत्संग के प्रभाव से ही नारद दासी के पुत्र से नारायण के पुत्र हो गये । उसी नारद जी के प्रेरना से वेदव्यास जी ने 18000 स्लोक वाले श्रीमद् देवी भागवत की रचना की। व्यास जी ने कहा देवी भागवत मां दुर्गा के दिव्य स्वरूप का ही पति रूप है जो इसे किसी भी रूप में आत्मसात करता है वह मां की कृपा से आत्मबलि हो जाता है ।देवी की भक्ति करने वाला जिस रास्ते पर चलता है, विकास का रथ अपने आप उसके साथ चलने लगता है। उन्होंने कहा कि अतीत को भूल कर बर्तमान को जीने वाला हमेशा तरोताजा रहता है। देश को तमाम दानव खोखला करने में लगे हैं उनसे निबटने की जरूरत है बाहर से भले देश की हालत अच्छी लगती हो लेकिन भीतर से खोखला नजर आ रहा है ऐसी स्थिति से निबटने के लिए संकल्प शक्ति इच्छा शक्ति और कल्पना शक्ति के विकास की जरूरत है ।आज की कथा का मुख्य आकर्षण सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा रही।राजा रघु के दान की गाथा रही। अंत में उन्होंने सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। मामस भुवनेश्वर की ओर से आयोजित कथा 11जून को पूर्णाहुति और प्रसाद सेवन के साथ संपन्न होगी।
अशोक पाण्डेय
संसार की जलन से शांति दिलाता है श्रीमद् देवीभागवत कथा पंडित श्री श्रीकांत जी शर्मा ,कोलकाता :——–
