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सकारात्मक सोचवाले कर्मवीर राजपूतःचन्द्रशेखर सिंह

ओडिशा प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर के विवेकानंद मार्ग,फुलवाटिका-564 में पिछले लगभग तीन दशकों से अपनी कर्मस्थली बनाकर रहनेवाले सहृदय राजपूत चन्द्रशेखर सिंह ,सकारात्मक सोच के धनी कर्मवीर व्यक्तित्व हैं।ये अत्यंत सरल,सहज,सौम्य तथा आत्मीय स्वभाव के व्यक्ति हैं।इनका आविर्भाव(जन्म) 19दिसंबर,1964 में बिहार प्रांत के सारण जिले के गांवःबेलनलिया,टोलाःगढवाल के एक कुलीन राजपूत परिवार में हुआ।वे अपने माता-पिता की एक सुयोग्य संतान हैं जो भारतीय संस्कृति की शाश्वत संयुक्त परिवार की परम्परा में पूर्णरुपेण विश्वास रखते हैं और उसका अक्षरशः पालन भी करते हैं। इनके सफलतम जीवन की प्रेरणा इनकी धर्मपत्नी श्रीमती मतीकांति देवी तथा कुलभूषण त्रय पुत्रःगोपीचन्द सिंह,गोविंद चन्द सिंह तथा गौरव चन्द सिंह ही हैं।गौरतलब है कि भुवनेश्वर शुभम कंस्ट्रस्क्शन प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक चन्द्रशेखर सिंह ने अबतक कुल लगभग 10 हजार एपार्टमेंट बनाकर लोगों को सौंप दिया है जबकि कुल लगभग पांच हजार का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। इसप्रकार वे भुवनेश्वर के एपार्टमेंट संस्कृतिक के चुने हुए 5 शीर्ष बिल्डरों में से एक हैं।कहते हैं कि राजपूत बडे ही साहसी,वीर और जुझारु होते हैं,ये तीनों गुण चन्द्रशेखर सिंह के पारदर्शी व्यक्तित्व में देखने को मिलता है।ये अपना जीवन सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में भी सदैव लगाये रहते हैं। ये वास्तव में एक कर्मयोगी हैं।यह भी कहा जाता है कि राजपूत चार प्रकार के-चौहान,परमार,सोलंकी तथा प्रतिहार रुपों में देखे जाते हैं।चन्द्रशेखर सिंह को प्यार से सभी बाबू साहब कहकर पुकारते हैं।इनकी सामाजिक पहचान बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय के रुप में है।ये बडे ही आत्मविश्वासी हैं।ये बडे गर्व से सामनेवाले से आंख से आंख मिलाकर बात करते हैं और उसका दिल जीत लेते हैं।इनकी सूझबूझ तो कमाल की है।ये अपने चाहनेवालों के दिलों पर शासन करते हैं। ये दूसरों की सिर्फ अच्छाइयों को हंस की चतुराई की तरह देखकर ले लेते हैं। इनके बोलचाल की भाषा अत्यंत सरल,मृदुल तथा प्रभावकारी है।इनके पास विचार-विनयमय की अनोखी संस्कृति है।ये वक्ता कम,श्रोता अधिक हैं।ये जरुरतमंदों की बात बडे धीरज के साथ सुनते हैं तथा उसकी मदद तत्काल करते हैं।ये अपने व्यक्तिगत,पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन की अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में सदैव धीरज से काम लेते हैं।इनका यह मानना है कि-संसार सुख देगा नहीं,धरती पसीजी है कहीं, जिससे हृदय को बल मिले, ध्येय अपना तो यही।सच कहा जाय तो इनके दिल को अगर कोई जीत सकता है तो वह केवल वफादार तथा ईमानदार व्यक्ति ही।इनके गांव बेलवनिया में 1998 से पहले कोई बालिका उच्च विद्यालय नहीं था और बालिकाओं को लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पडता था जिसके स्थाई निवारण के लिए इन्होंने बेलवनिया अपने गांव में कांति-शेखर उच्च विद्यालय खोलकर अबतक हजारों बालिकाओं को शिक्षित बनाया है।इनका यह मानना है कि जिसप्रकार ये सरकारी नौकरी के विषय में न सोचकर अपने कारोबार के विषय में सोचे और आज ये कामयामी के जिस मुकाम पर आसीन हैं ठीक उसी प्रकार देश के सभी युवा सोचें और करें। बिस्वास,भुवनेश्वर समेत अनेक गैरसरकारी संस्थाओं के ये सक्रिय सदस्य हैं और अपने आत्मस्वावलंबन तथा निःस्वार्थ समाजसेवा के यथार्थ आदर्श हैं और सभी को यहीं प्रेरणा देते हैं कि सभी स्वावलंबी तथा निःस्वार्थ समाजसेवी बनें।

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