-अशोक पाण्डेय
रामायण और रामचरितमानस दोनों ही महाकाव्य हैं जिनमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के सम्पूर्ण जीवन का सांगोपांग वर्णन है।दोनों कालजयी महाकाव्यों में जंगल की संस्कृति तथा जंगल की ओर मन,वचन और कर्म से जाने का सुंदर वर्णन है। रामायण के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि हैं जबकि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की गई है जबकि रामचरितमानस की रचना हिन्दी में की गई है।रामायण का अर्थ-राम और अयन है। अयन के भी दो अर्थ हैं-एक घर और दूसरा चलना।यह बात गोस्वामी तुलसीदास अपने चित्रकूट के प्रसंग में स्पष्ट करते हैं कि जब बाल्मीकि से राम मिलते हैं तो उनसे यह पूछते हैं कि बताइए कि वे अपनी कुटिया कहां बनाएं।तब वाल्मीकि कहते हैं कि इस संसार में कोई ऐसी जगह नहीं है जहां पर राम आप नहीं हैं।कहते हैं कि वाल्मीकि के सुझाव पर ही श्रीराम ने चित्रकूट में अपनी कुटिया मंदाकिनी के तट पर बनाई।वह कुटिया राम,लक्ष्मण और सीता तीनों ने मिलकर अपने परिश्रम बनाई।उस कुटिया में प्रवेश करने से पूर्व श्रीराम ने वास्तुयज्ञ किया।अयन का दूसरा अर्थ चलना होता है और वह भी एक निश्चित उद्देश्य से चलना। वन में आकर श्रीराम चित्रकूट में सिर्फ रात्रि विश्राम ही नहीं करते हैं अपितु वे वन में जा-जाकर सप्रेम वनवासियों मिलते हैं, उनका हाल-चाल जानते हैं और उनसे अपनी आत्मीयता बढाते हैं। वे वन में तपस्या करनेवाले ऋषि-मुनियों के पास भी जाते हैं और उनकी आसुरी शक्तियों से रक्षा भी करते हैं।वे दण्क वन में भी जाते हैं जहाँ राक्षसों द्वारा खाए गए और आग में पकाए गए ऋषियों की हड्डियाँ बिखरी पड़ीं होतीं हैं। देखते ही श्रीराम का क्रोध संकल्प बन जाता है।14 वर्षों तक राम वनवासी ही रहते हैं।वे जंगल की राजनीति का संचालन करते हैं।जंगल से ही वे युद्ध का संचालन भी करते हैं।सबसे बडी बात यह है कि राम अयोध्या में रहते हैं लेकिन राम का मन जंगल में ही लगा रहता है। उनके पत्नी सीता भी प्रारब्धानुसार राजपाट का त्यागकर जंगल चली जाती हैं।इसलिए निर्विवाद रुप से श्रीराम की अयन की पूरी यात्रा जंगल से जंगल की यात्रा है। एक तप से दूसरे तप की यात्रा है। उनका एक तप वन में होता है और अंतिम तप अयोध्या में।वाल्मीकि के ‘रामायण’में भी यह वर्णन जंगल से ही आरंभ होता है तथा उस महाकाव्य का पहला पाठ भी जंगल से ही आरंभ होता है।एक बात और यह कि वाल्मीकि रामायण तथा रामचरित मानस के वक्ता तथा श्रोता चार-चार ही हैं।दोनों महाकाव्यों में दो प्रमुख संस्कृतियों का वर्णन है,एक है रामायण में जंगल की संस्कृति का सांगोपांग वर्णन है जबकि रामचरितमानस मंठ मर्यादित जीवन के समन्वय की एक विराट और सफलतम चेष्टा की संस्कृति।अगर आज के परिपेक्ष्य में विचार किया जाय तो आजकल के जितने भी श्रेष्ठतम रामकथावाचक हैं वे सभी रामचरितमानस तथा रामायण के रोचक जंगल प्रसंगों तथा ऋतुराज वसंत के वर्णन आदि के उदाहरणों द्वारा ही करते हैं जिससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि राम की इस धरती की यात्रा जंगल की संस्कृति से आरंभ होकर जंगल की संस्कृति में समाहित हो जाती है।और यही है- रामायण और रामचरितमानस की रामकथाओं के संदेश
-अशोक पाण्डेय
