Header Ad

Categories

  • No categories

Most Viewed

त्रेता में भी एकबार जब श्रीराम की सेवा के लिए होड़ लगी थी

-अशोक पाण्डेय
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है। वे यह भी लिखते हैं कि-नाना भांति राम अवतारा।रामायण सत कोटि अपारा।। सच तो यह भी है कि मनुष्य जीवन के जितने भी आपसी संबंध हैं उनसभी को श्रेष्ठतम रुप में निभाने के संदेश स्वरुप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं।तुसलीदास की अमर रचना रामचरितमानस जो आज भी प्रत्येक सनातनी के घर-घर में एक पूज्य ग्रंथ के रुप में पूजाघरों में रखी गई है वह सभी प्रकार के आपसी संबंधों के समन्वय की एक विराट चेष्टा है।श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्र में पूर्णता है तथा मर्यादा है।उनका चरित्र पूरी तरह से व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय स्तर पर सभी के लिए वंदनीय तथा अनुकरणीय है क्योंकि श्रीराम चंद्र जी रीति-नीति-प्रीति और भीति-सभी प्रकार से पूर्ण हैं। उनके सम्पूर्ण जीवन के अवलोकन से यह पता चलता है कि उनका सम्पूर्ण जीवन त्याग का आदर्श है।आज भी त्याग और सेवा की आवश्यकता है। त्रेतायुग में एकबार श्रीराम चन्द्र की सेवा के लिए होड़ लग गई। उनके सभी भाई भरतलाल,लक्ष्मण और शत्रुघ्न चाहते थे कि सबसे पहले श्रीरामचन्द्रजी की सेवा का अवसर उन्हें ही मिले।लेकिन निःस्वार्थ सेवा के रुप में जीत तो हनुमान जी को ही मिली थी।यह भी सच है कि श्रीरामचन्द्रजी के जीवन में कोई भी ऐसा क्षण नहीं था जिसमें हनुमान जी अपनी निःस्वार्थ सेवा में नजर नहीं आते हों। ऐसे में, श्रीरामचन्द्र जी की पत्नी सीताजी,भाई भरतलाल,लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न ने मिलकर यह विचार किया कि श्रीरामचन्द्रजी की सेवा को सभी मिलकर परस्पर बांट लें और हनुमान जी को किसी भी प्रकार की कोई भी सेवा का मौका नहीं दें।श्रीरामचन्द्रजी ने उस योजना को अपनी सहमति कौतुहलवश प्रदान कर दी। अगले दिवस भोर में हनुमान जी श्रीराम चन्द्रजी की सेवा के लिए आये। शत्रुघ्नजी यह कहकर उन्हें रोक दिया कि श्रीरामचन्द्र जी सेवा-कार्य निश्चित कर लिया गया है जिसमें उनका कोई स्थान नहीं है।जब सेवा-सूची हनुमान जी ने देखी तो वे मन ही मन सोचे और मन ही मन मुसकराकर वहां से चल दिये। रास्ते में सोचने लगे कि वे अपने स्वामी श्रीरामचन्द्रजी अब कौन-सी सेवा करें जिससे वे उनपर प्रसन्न रहें।उन्हें यह सूझा कि श्रीरामचन्द्र जी जब जमुहाई लेंगे तो वे चुटकी बजाने की सेवा करेंगे। वे आकर श्रीरामचन्द्रजी के सिंहासन के समीप बैठ गये और एकटक श्रीराम चन्द्रजी के मुख को देखकर इंतजार करने लगे कि कब उन्हें जमुहाई आती है जिससे कि वे अपनी चुटकी बजाकर उनकी जमुहाई को दूर करेंगे।ऐसे में वे दिनभर श्रीरामचन्द्रजी के साथ रहे।रात हो गई। श्रीरामचन्द्रजी राजभवन लौट गये। हनुमान जी राजभवन के कंगूरे पर जाकर बैठ गये और धीरे-धीरे चुटकी बजाने लगे।उधर राजभवन में अचानक श्रीरामचन्द्रजी को जमुहाई आ गई और हनुमान जी चुटकी-सेवा पूर्ण हो गई। श्रीराम चन्द्रजी के खुले मुंह देखकर सबसे पहले सीताजी घबराईं। दौड़ी-दौड़ी वे माता कौसिल्या जी के पास जाकर उन्हें बुलाया। वे भी हैरान।यह खबर पूरे राजभवन में तेजी से फैल गई। कैकेई,सुमित्रा,भरतलाल,लक्ष्मण,शत्रुघ्न आदि सभी घबराकर श्रीरामचन्द्रजी के समीप खड़े हो गये।उनका मुंह खुला हुआ था। कुलगुरु वसिष्ठ जी भी आये। वे भी श्रीरामचन्द्रजी की उस विचित्र दशा को देखकर आश्चर्यचकित हो गये।उन्होंने इधर-उधर अपनी नजर दौड़ाई लेकिन वहां पर रामभक्त हनुमान उन्हें कहीं नजर नहीं आये।कुलगुरु ने पूछा कि रामभक्त हनुमान कहां हैं। उन्हें तत्काल बुलाया जाय।हनुमान जी जैसे ही वहां आये श्रीराम चन्द्रजी ने अपना मुंह बंद कर लिया।सभी ने हनुमान से पूछा कि वे कहां थे और उनके आने के साथ ही श्रीराम चन्द्रजी अपना मुंह क्यों बंद कर लिए। हनुमान ने बताया कि वे तो राजभवन के कंगूरे पर बैठकर अपनी चुटकी-सेवा श्रीरामचन्द्रजी को दे रहे थे।उनके सेवाकार्य में कोई गलती न हो जाये इसलिए वे लगातार चुटकी बजा रहे थे। इसपर श्रीराम चन्द्रजी मुसकराते हुए जवाब दिये कि हनुमान जब चुटकी बजाते रहे तो मुझे जमुहाई आती ही रहीं। अब तो सारा भेद खुल गया और निःस्वार्थ रामभक्त हनुमान की सेवानिष्ठा से सभी प्रसन्न हो गये और सीताजी ने हनुमान से कहा कि वे चुटकी बजाना छोड़कर जो सेवा श्रीरामचन्द्रजी पूर्व में करते रहे हैं वहीं सेवा वे पुनः आरंभ कर दें।त्रेता के बाद 21वीं सदी में 22जनवरी,2024 को अयोध्या में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा का आध्यात्मिक कार्यक्रम है जिसके लिए सभी तैयारियां युद्धस्तर पर चल रहीं हैं जिसमें रामभक्त हनुमान मंदिर को भी अति विशिष्ट स्थान दिया गया है।अयोध्या का यह नव निर्मित राममंदिर दुनिया का सबसे बड़ा राममंदिर है जो लगभग 70 एकड़ भू-भाग पर निर्मित है।यह पूरी तरह से भारतीय परम्परानुसार तथा स्वदेशी तकनीक से तैयार किया गया है। अयोध्या का यह राममंदिर नागर शैली में तैयार किया गया है जिसकी ऊंचाई लगभग 161 फीट है।इसमें कुल 392 स्तंभ हैं तथा रामलला के दर्शन के लिए कुल 44 दरवाजे हैं। यह मंदिर पूर्व से पश्चिम की ओर 380 फीट लंबा तथा 250 फीट चौड़ा है।मंदिर तीन मंजिला मंदिर है। श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में त्रेतायुग के रामराज्य के करीब-करीब सबकुछ का ध्यान रखा गया है।जैसेः उस काल के सभी सनातनी देवी-देवतागण के मंदिर हैं,सीता कुण्ड है,महर्षि वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, शबरी,अहिल्या आदि के मंदिर हैं। मंदिर का पूरा परिवेश आध्यात्मिक है।ऐसे में, त्रेतायुग की तरह ही आज की 21वीं सदी में भी भारतवर्ष के पूर्व-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण के सभी सनातनी भगवान श्रीराम चन्द्रजी की अटूट सेवा और भक्ति में जुट चुके हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है पूरे भारतवर्ष में जगह-जगह पर रामकथा का आयोजन,सभी आध्यात्मिक चैनलों पर रामकथा का सीधा प्रसारण तथा सोनी चेनेल पर श्रीमद् रामायण का सीधा प्रसारण।सच कहा जाय तो आज के पश्चिमी सभ्यता के चकाचौंध से भारतीयता को बचाकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन का सबसे बडा व्यावहारिक आदर्श सभी प्रकार के सेवा-भाव को जन-जन तक पहुंचाना है जिससे सम्पूर्ण भारतवर्ष तथा भारतीयता की रक्षा हो सके।
-अशोक पाण्डेय.

    Leave Your Comment

    Your email address will not be published.*

    Forgot Password