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अक्षयतृतीया 10 मई को

-अशोक पाण्डेय
वर्षः2024 की अक्षयतृतीया 10मई,शुक्रवार को है।वैदिक पंचांग के अनुसार(ज्योतिष-तत्त्वांक,वैदिक विज्ञान केन्द्र,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी,उत्तरप्रदेश के अनुसार) तथा श्रीमंदिर प्रशासन पुरी के मादलापंजी के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पवित्रतम तिथि है। उसी दिन भगवान परशुराम की पावन जयंती है।अक्षय तृतीया को युगादि तृतीया भी कहते हैं।अक्षय तृतीया से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का शुभारंभ हुआ था।इसे युगादि तृतीया भी कहा जाता है।अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान बदरीनाथजी का कपाट उनके दर्शन के लिए खोल दिया जाता है।कहते हैं कि शांतिदूत भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनाई थी।भारत के अन्यतम धाम श्री जगन्नाथधाम पुरी में अक्षय तृतीया के मनाये जाने की सुदीर्घ तथा अत्यंत गौरवशील परम्परा अनादिकाल से रही है।यह भगवान जगन्नाथ के प्रति ओडिया लोक आस्था-विश्वास का महापर्व है।स्कंद पुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में यह बताया गया है कि जो वैष्णव भक्त अक्षय तृतीया के सूर्योदयकाल में प्रातः पवित्र स्नान कर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करता है। उनकी कथा सुनता हैवह मोक्ष को प्राप्त करता है।
प्रतिवर्ष अक्षयतृतीया के पवित्र दिवस पर पुरी धाम मेंभगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है। जगन्नाथ भगवान की विजयप्रतिमा श्री मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में अलौकिक रुप में अनुष्ठित होती है।ओड़िशा जैसे कृषिप्रधान प्रदेश के किसान अक्षय तृतीया के दिन से ही अपने-अपने खेतों में जुताई-बोआई का पवित्र कार्य आरंभ करते हैं।सच कहा जाय तो ओडिशा के घर-घर में अक्षयतृतीया का सामाजिक,धार्मिक,सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व देखने को मिलता है क्योंकि ओड़िशा की संस्कृति वास्तव में श्री जगन्नाथ संस्कृति ही है जहां के जन-मन के प्राण भगवान जगन्नाथ है। इसीलिए ओड़िशा के प्रत्येक सनातनी के इष्टदेव,गृहदेव,ग्राम्यदेव तथा राज्य देव भगवान जगन्नाथ ही हैं। अक्षय तृतीया के दिन से ही ओडिशा में मौसम में बदलाव(वर्षा का आगमन)आरंभ हो जाता है। अक्षयतृतीया ओडिशा में मानव-प्रकृति के अटूट संबंधों को पावन संदेश है।अक्षयतृतीया से ही ओडिशा में नये पारिवारिक तथा सामाजिक रिश्तों-संबंधों(उपनयन संस्कार और शादी-विवाह आदि) का श्रीगणेश होता है। नवनिर्मित गृहों में,दुकानों में तथा मॉल आदि में प्रवेश की पावन तिथि भी अक्षयतृतीया ही होती है।अक्षयतृतीया के दिन ओडिशा में महोदधिस्नानकर अक्षयतृतीया व्रतपालनकर दान-पुण्य का विशेष महत्त्व है। स्कंदपुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में अक्षयतृतीया-पवित्र स्नान तथा पूजन आदि का विस्तृत उल्लेख है। अक्षयतृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान-पुण्य का अति विशिष्ट महत्त्व माना जाताहै। अक्षयतृतीया के पावन दिवस के दिन ही अनन्य श्रीकृष्ण भक्त सुदामा नामक अति गरीब ब्राह्मण मित्र नंगे पांव चलकर द्वारकाधीश से मिलने द्वारका गया था।सुदामा को बिना कुछ मांगे ही द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने द्वारकाधीश जैसा उसे अलौकिक सुख प्रदान कर दिया था।अक्षयतृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ को चने की दाल के भोग निवेदित करने की सुदीर्घ परम्परा रहीहै। ओडिशा में अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षयतृतीया के दिन फल, फूल आदि का दान प्रत्येक सनातनी खुले दिल से करते पाये जाते हैं।कहते हैं कि वैशाख माह की पवित्र तिथियों में शुक्ल पक्ष की द्वादशी समस्त पापराशि का विनाश करती है।शुक्ल द्वादशी को जो अन्न को दान करता है उसके एक-एक दाने में कोटि-कोटि ब्राह्मणों के भोजन कराने का पुण्य प्राप्त होता है।शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन जो भक्त भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए जागरण करता है वह जीवनमुक्त हो जाता है। जो भक्त वैशाख की द्वादशी तिथि को तुलसी के कोमल दलों से भगवान विष्णु की पूजा करता है ,वह अपने पूरे कुल का उद्धारकर बैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त त्रयोदशी तिथि को दूध-दही,शक्कर,घी और शुद्ध मधु आदि से पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करता है तथा जो श्रीहरि को पंतामृत से पवित्र स्नान कराता है ,वह अपने सम्पूर्ण कुल का उद्धार करके विष्णु लोक को प्राप्त करता है।जो भक्त अक्षय तृतीया के दिन सायंकाल श्रीहरि को शर्बत निवेदित करता है वह अपने पुराने पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है।वैशाख शुक्ल द्वादशी को जो भक्त कुछ पुण्य करता है वह अक्षय फल देनेवाला होता है। अति प्राचीन काल की बात है। अक्षय तृतीया के दिन महोदय नामक एक गरीब ब्राह्मण गंगास्नान कर किसी आचार्य से अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनी। उसने ब्राह्मण को दान में सत्तू,नमक,चावल,गुड आदि का दान किया। वह तत्काल श्रीहरि कृपा से कुधावती नगर का राजा बन गया और अपने राज्य में सभी को अक्षय तृतीया व्रत पालन करने की घोषणा कर दी। कहते हैं कि तभी से कुधावती नगर में अक्षय तृतीया व्रत निष्ठापूर्वक करने की परम्परा आरंभ हो गई।मानव-प्रकृति की आत्मीय घनिष्ठता का महापर्व है ओडिशा की अक्षयतृतीया जिसे इस वर्ष 10 मई को प्रत्यक्ष रुप से देखा जा सकता है।
पुरी धाम में सबकुछ जगन्नाथ जी को महारुप में निवेदित होता है। जैसेःमहाप्रसाद,महादान और महादीप आदि।ओडिशा की आध्यात्मिक नगरी पुरी में प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा तथा जगन्नाथ जी के प्रथमसेवक कहे जानेवाले गजपति के राजमहल(श्रीनाहर) के सामने बडदाण्ड पर पूरी जगन्नाथ संस्कृति विधि-विधान से साथ आरंभ होता है ।रथों के निर्माण में कम से कम 42 दिन का समय अवश्य लगता है। अक्षय तृतीया के दिन से ही जगन्नाथ भगवान की विजय प्रतिमा श्री मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में आरंभ होती है। कृषिप्रधान प्रदेश ओडिशा के किसान अक्षय तृतीया के दिन से ही अपने-अपने खेतों में जुताई-बोआई का पवित्र कार्य आरंभ करते हैं जिसका शुभारंभ ओडिशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक स्वयं करते हैं।ओडिशा के घर-घर में अक्षय तृतीया का पारिवारिक,सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक तथा लौकिक महत्त्व देखने को मिलता है।अक्षय तृतीया के दिन से ही ओडिशा में मौसम में बदलाव(वर्षा का आगमन) आरंभ होता है। अक्षय तृतीया ओडिशा में मानव-प्रकृति के अटूट संबंधों को बताती है।अक्षय तृतीया से ही ओडिशा मे नये पारिवारिक तथा सामाजिक रिश्तों(उपनयन संस्कार और शादी-विवाह आदि) का श्रीगणेश होता है। नवनिर्मित गृहों में प्रवेश की पावन तिथि भी ओडिशा में अक्षय तृतीया ही होती है। वैसे तो अक्षयतृतीया को युगादि तृतीया भी कहते हैं। इसे भगवान परशुराम जयंती के रुप में भी मनाया जाता है। अक्षय तृतीया से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का आरंभ हुआ था। अक्षय तृतीया से ही भगवान बदरीनाथजी का कपाट उनके दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनाई थी। अक्षय तृतीया के दिन ओडिशा में महोदधिस्नानकर अक्षयतृतीया व्रतपालनकर दान-पुण्य का विशेष महत्त्व है। अक्षयतृतीया-पवित्र स्नान तथा पूजन आदि का पुरी में विशेष महत्त्व है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान-पुण्य का अति विशिष्ट महत्त्व माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ को चने की दाल का भोग निवेदित किया जाता है। ओडिशा में अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षय तृतीया के दिन फल, फूल आदि का दान प्रत्येक सनातनी खुले दिल से करते हैं।कहते हैं कि अक्षयतृतीया के दिन जो भक्त भगवान विष्णु की पूजा करता है,वह अपने पूरे कुल का उद्धारकर बैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त दूध-दही,शक्कर,घी और शुद्ध मधु आदि से पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करता है, उन्हें पंचामृत से पवित्र स्नान कराता है,वह अपने सम्पूर्ण कुल का उद्धार करके विष्णु लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त अक्षयतृतीया के दिन सायंकाल श्रीहरि को शर्बत निवेदित करता है वह अपने पुराने पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है।उस दिन जो भक्त कुछ पुण्य करता है वह अक्षय फल देनेवाला होता है।पुरी में अक्षयतृतीया के दिन से ही भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है जो श्रीमंदिर के समस्त रीति-नीति के तहत वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होता है। रथ-निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है। इस कार्य को वंशानुगत क्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं। यह कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत विधि से संपन्न होता है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह मानना है कि तीनों रथ, बलभद्रजी का रथ तालध्वज रथ,सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से होता है। रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं। प्रतिवर्ष वसंतपंचमी के दिन से रथनिर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य आरंभ होता है।अक्षयतृतीया के दिन ही पुरी के चंदन तालाब में श्री जगन्नाथ जी की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदन यात्रा भी आरंभ होती है जो पूरे 21 दिनों तक चलती है। श्रीमंदिर की समस्त रीति-नीति के तहत जातभोग संपन्न होने के उपरांत अपराह्न बेला में भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन, रामकृष्ण, बलराम,पंच पाण्डव, लोकनाथ, मार्कण्डेय, नीलकण्ठ, कपालमोचन, जम्बेश्वर लक्ष्मी, सरस्वती आदि को अलौकिक शोभायात्रा के मध्य पुरी नगर परिक्रमा कराकर चंदन तालाब लाया जाता है।अक्षय तृतीया के दिन से ही जलप्रिय जगत के नाथ के लिए लगातार 21दिन तक बाहरी चंदनयात्रा का अलौकिक आनंद देश-विदेश के लाखों वैष्वभक्तवहां के चंदन तालाब में प्रतिदिन सायंकाल से मध्यरात्रि तक उठाते हैं।

अशोक पाण्डेय

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