प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को अनुष्ठित होनेवाली भगवान जगन्विनाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा एक सांस्कृतिक महोत्सव है। वह दशावतार यात्रा, गुण्डीचा यात्रा, जनकपुरी यात्रा, घोष यात्रा , पतितपावनी यात्रा, नव दिवसीय यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है ।निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है। इस पावन कार्य को वंशानुक्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं। रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पंचतत्वों से मानव-शरीर का निर्माण हुआ है, ठीक उसी प्रकार काष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावट आदि की सामग्रियों से रथों का पूर्णरुपेण निर्माण होता है।
तालध्वज रथः
यह रथ बलभद्रजी का रथ है जिसे बहलध्वज भी कहते हैं। यह 44फीट ऊंचा होता है। इसमें 14चक्के लगे होते हैं। इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इस रथ पर लगे पताकों को नाम उन्नानी है। इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में लाल-हरा होता है। इसके घोडों का नामःतीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं। घोडों का रंग काला होता है। रथ के रस्से का नाम बासुकी होता है।रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी, हलयुध, मृत्युंजय, नतंभरा, मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं। रथ के सारथि हैं मातली तथा रक्षक हैं-वासुदेव।
देवदलन रथ:
यह रथ सुभद्राजी का है जो 43फीट ऊंचा होता है। इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है। इसमें कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इसपर लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है। इसमें 12 चक्के होते हैं। रथ के सारथि का नाम अर्जुन है। रक्षक जयदुर्गा हैं। रथ पर लगे पताके का नाम नदंबिका है। रथ के चार घोडे हैं –रुचिका,मोचिका,जीत तथा अपराजिता हैं। घोडों का रंग भूरा है। रथ में उपयोग में आनेवाले रस्से का नाम स्वर्णचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैःचण्डी, चमुण्डी, उग्रतारा, शुलीदुर्गा, वराही, श्यामकाली, मंगला और विमला हैं।
नन्दिघोष रथ:
यह रथ भगवान जगन्नाथजी का है जिसकी ऊंचाई 45फीट होता है। इसमें 16चक्के होते हैं। इसके निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता है। इसपर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है। इसके सारथि दारुक तथा रक्षक हैं –गरुण। इसके चार घोडे हैःशंख,बलाहक,सुश्वेत तथा हरिदाश्व।इस रथ में लगे रस्से का नामः शंखचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैःवराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण,नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान तथा रुद्र हैं। 2021 की रथयात्रा 12जुलाई को है इसीलिए 11जुलाई को आषाढ शुक्ल प्रतिपदा के दिन तीनों ही रथों को पूर्णरुपेण निर्मितकर रथखला से लाकर उसे पूरी तरह से सुसज्जितकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने खडा कर दिया जाएगा जिसमें 12जुलाई को आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी विजयकर रथारुढ किया जाएगा। पुरी के शंकराचार्य जगतगुरु परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग गोवर्द्धन मठ से अपने परिकरों के साथ आकर रथों का अवलोकन करेंगे।पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्यसिंहदेवजी महाराजा रथों पर छेरापंहरा का पवित्र दायित्व निभाएंगे। उसके उपरांत आरंभ होगी रथयात्रा।सुरक्षा के लिए 65प्लाटून पुलिस बल, 10अतिरिक्तएसपी, 31डीसीपी,64सहायक कमाण्डेंट तथा 64आईआईसी तैनात किये गये हैं।सुरक्षा की दृष्टि से पुरी को 12जोन में बांट दिया गया है जिसमें चार जोन श्रीमंदिर के आसपास रखा गया है। ऐसी अपेक्षा की जाती है कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से कोरोना संक्रमण के बावजूद भी रथयात्रा शांतिपूर्ण तरीके से सेवायतों के द्वारा संपन्न होगी।
अशोक पाण्डेय
रथयात्राः2021
