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श्रीजगन्नाथपुरी में अक्षयतृतीया 22अप्रैल को

-अशोक पाण्डेय
वर्षः2023 की अक्षय तृतीया 22अप्रैल को है। भारत के सभी प्रदेशों में अक्षय तृतीया आस्था तथा विश्वास के साथ मनाई जाती है।पुरी धाम में इसके मनाये जाने की अत्यंत गौरवशील परम्परा रही है। यहां पर लगभग एक हजार वर्ष पूर्व से यह परम्परा देखने को मिलती है। वैशाख शुक्ल तृतीया को ही अक्षय तृतीया कहा जाता है।स्कंद पुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में यह बताया गया है कि जो वैष्णव भक्त अक्षय तृतीया के सूर्योदयकाल में प्रातः पवित्र स्नान कर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करता है। उनकी कथा सुनता है ,वह मोक्ष को प्राप्त करता है।प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के पवित्र दिवस पर पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है।अक्षय तृतीया के दिन से ही जगन्नाथ भगवान की विजय प्रतिमा श्री मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा आरंभ होती है। कृषिप्रधान प्रदेश ओडिशा के किसान अक्षय तृतीया के दिन से ही अपने-अपने खेतों में जुताई-बोआई का पवित्र कार्य आरंभ करते हैं।ओडिशा के घर-घर में अक्षय तृतीया का सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक तथा लौकिक महत्त्व अनादिकाल से देखने को मिलता है।अक्षय तृतीया से ही ओडिशा में मौसम में बदलाव(वर्षा का आगमन) आरंभ होता है। अक्षय तृतीया ओडिशा में मानव-प्रकृति के अटूट संबंधों को बताती है।अक्षय तृतीया से ही ओडिशा मे नये पारिवारिक तथा सामाजिक रिश्तों(उपनयन संस्कार और शादी-विवाह आदि) का श्रीगणेश होता है। नवनिर्मित गृहों में प्रवेश की पावन तिथि भी अक्षय तृतीया ही होती है। अक्षय तृतीया को युगादि तृतीया भी कहते हैं। इसे भगवान परशुराम जयंती के रुप में भी मनाया जाता है। अक्षय तृतीया से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का आरंभ हुआ था। अक्षय तृतीया से ही भगवान बदरीनाथजी का कपाट उनके दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनाई थी। अक्षय तृतीया के दिन ओडिशा में महोदधिस्नानकर अक्षय तृतीया व्रतपालनकर दान-पुण्य का विशेष महत्त्व है। स्कंदपुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में अक्षय तृतीया-पवित्र स्नान तथा पूजन आदि का विस्तृत उल्लेख है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान-पुण्य का अति विशिष्ट महत्त्व माना जाता है। अक्षय तृतीया के पावन दिवस के दिन ही अनन्य श्रीकृष्ण भक्त सुदामा नामक गरीब ब्राह्मण मित्र नंगे पांव चलकर द्वारकाधीश से मिलने द्वारका गया था।सुदामा को बिना कुछ मांगे ही श्रीकृष्ण ने द्वारकाधीश जैसा अलौकिक सुख प्रदान कर दिया था। जहां उन्हें बिना मांगे ही द्वारकानगरी जैसी ही अलौकिक सुदामानगरी प्रदान कर दी थी द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने। अक्षय तृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ को चने की दाल के भोग निवेदित करने की सुदीर्घ परम्परा रही है। ओडिशा में अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षय तृतीया के दिन फल, फूल आदि का दान प्रत्येक सनातनी खुले दिल से करते हैं।कहते हैं कि वैशाख माह की पवित्र तिथियों में शुक्ल पक्ष की द्वादशी समस्त पापराशि का विनाश करती है।शुक्ल द्वादशी को जो अन्न को दान करता है उसके एक-एक दाने में कोटि-कोटि ब्राह्मणों के भोजन कराने का पुण्य प्राप्त होता है।शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन जो भक्त भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए जागरण करता है वह जीवनमुक्त हो जाता है। जो भक्त वैशाख की द्वादशी तिथि को तुलसी के कोमल दलों से भगवान विष्णु की पूजा करता है ,वह अपने पूरे कुल का उद्धारकर बैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त त्रयोदशी तिथि को दूध-दही,शक्कर,घी और शुद्ध मधु आदि से पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करता है तथा जो श्रीहरि को पंतामृत से पवित्र स्नान कराता है ,वह अपने सम्पूर्ण कुल का उद्धार करके विष्णु लोक को प्राप्त करता है। जो भक्त अक्षय तृतीया के दिन सायंकाल श्रीहरि को शर्बत निवेदित करता है वह अपने पुराने पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है।वैशाख शुक्ल द्वादशी को जो भक्त कुछ पुण्य करता है वह अक्षय फल देनेवाला होता है। अक्षय तृतीया को युगादि तृतीया भी कहा जाता है।अति प्राचीन काल की बात है। अक्षय तृतीया के दिन महोदय नामक एक गरीब ब्राह्मण गंगास्नान कर किसी आचार्य से अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनी। उसने ब्राह्मण को दान में सत्तू,नमक,चावल,गुड आदि का दान किया। वह तत्काल श्रीहरि कृपा से कुधावती नगर का राजा बन गया और अपने राज्य में सभी को अक्षय तृतीया व्रत पालन करने की घोषणा कर दी। कहते हैं कि तभी से कुधावती नगर में अक्षय तृतीया व्रत निष्ठापूर्वक करने की परम्परा आरंभ हो गई।
अशोक पाण्डेय

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