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आध्यात्मिक शक्ति बोध और सौंदर्य बोध के जीवंत प्रमाण हैं पुरी धाम में विराजमान महाप्रभु जगन्नाथ

-अशोक पाण्डेय
जगन्नाथ संस्कृति के विशेषज्ञों के अनुसार इस संस्कृति का आध्यात्मिक शक्ति बोध और सौंदर्य बोध के सत्युग से जीवंत प्रमाण हैं महाप्रभु जगन्नाथ और उनकी प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को अनुष्ठित होनेवाली उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा।जगतगुरु आदिशंकराचार्य का मानना है कि हमारी आध्यामिक चेतना के प्राण हैं-जगत के नाथ,श्रीश्री जगन्नाथ भगवान।उन्हीं की संस्कृति ही ओडिया संस्कृति है,भारतीय संस्कृति है। आदिशंकराचार्य के अनुसार “एक सुसंस्कृत, सुशिक्षित,सुरक्षित,समृद्ध, सेवापरायण स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना में विश्व मेधा-रक्षा-वाणिज्य और श्रमशक्ति का उपयोग एवं विनियोग हो। विश्व को धर्मनियंत्रित,पक्षपातविहीन-सर्वहितप्रद शासन सुलभ कराने में सत्पुरुषों की प्रीति तथा प्रवृत्ति परिलक्षित हो। सेवा और सहानुभूति के नाम पर किसी वर्ग के अस्तित्व और आदर्श को विलुप्त करने के समस्त षडयंत्र विश्वस्तर पर मानवोचित शील की सीमा में जघन्य अपराध उद्घोषित हो। विकास के नाम पर पर्यावरण को विकृत और विलुप्त करनेवाले समस्त प्रकल्प निरस्त हों। स्थावर,जंगम प्राणियों के हितों में पाश्चात जगत विनियुक्त हो। पृथ्वी,पानी,प्रकाश,पवन और आकाश सर्व शांतिप्रद और सुखप्रद हों।“और यही दिव्य संदेश पुरी गोवर्द्धनपाठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग भी कहते हैं। भगवान जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेव जी का इस संबंध में यह मानना है कि जगन्नाथ संस्कृति को अगर जीवित रखनी है तो महें स्कन्द पुराण में वर्णित भगवान जगन्नाथ की संस्कृति तथा उनके सुनिश्चित पूजा-पाठ को मूलरुप में अपनाना होगा। भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक यह भी चाहते हैं कि श्री जगन्नाथ मंदिर का सर्वांगीण विकास हो। इस विश्व विख्यात श्रीमंदिर के सभी सेवायतों,पूजकों,पुष्पपालकों तथा इससे जुडे सभी का विकास हो।इनके बच्चों का सर्वांगीण विकास हो। श्री दिव्य सिंहदेव जी महाभाग एक ही बात कहते हैं कि सभी को अपने-अपने व्यक्तिगत आध्यात्मिक जीवन में सदगुरु,सत्संग तथा सदग्रंथ को अपनाना चाहिए। ओडिशा संस्कृति के महान् जानकार स्वर्गीय गौरी कुमार ब्रह्मा का यह मानना था कि ओडिया संस्कृति के मूल में जगन्नाथ संस्कृति ही है जो हमें जगन्नाथ भगवान के नित्य दर्शन करने,उनकी प्रतिवर्ष रथयात्रा देखने तथा उनके नवकलेवर महोत्सव के दर्शन आदि के माध्यम से हमारे अंदर न केवल अच्छे संस्कार प्रवाहित हो जाते हैं अपितु हमें अपने सनातनी आध्यात्मिक शक्ति बोध और सौंदर्य बोध का स्वतः अहसास हो जाता है।जैसेः श्रीमंदिर के चार महाद्वारःपूर्व का प्रवेशद्वार सिंहद्वार कहलाता है जो धर्म का प्रतीक है जहां से जगन्नाथ भक्त श्रीमंदिर की 22सीढियों को पारकर अर्थात् अपने 22 दोषों को दूरकर श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते हैं।पश्चिम का द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है। श्रीमंदिर के उत्तर दिशा के द्वार का नाम हस्ती द्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर के दक्षिण दिशा के द्वार का नाम अश्व द्वार है जो ज्ञान का प्रतीक स्वरुप है।इसप्रकार धर्म,वैराग्य,ऐश्वर्य तथा ज्ञान के संदेशकवाहक हैं श्रीमंदिर के चार महाद्वार। श्रीमंदिर का पूरब दिशा के महाद्वार के ठीक ऊपर स्थापित हैं अष्ट महालक्ष्मी जो भारत की नारी शक्ति का पावन संदेश देती हैं।श्रीमंदिर का लगभग 10 एकड में फैला प्राकृतिक और सुरम्य वातावरण ,फूलों से लदे इसके बाग-बगीचे आदि श्रीमंदिर के सौंदर्यबोध को स्पष्ट करते हैं। जगन्नाथ संस्कृति का शक्तिबोध है भगवान जगन्नाथ का आरंभ से शबर जनजातीय समुदाय से जुडे होना जहां पर उनके देवता काठ के होते हैं जो प्रकृति और मानव के घनिष्ठ संबंध को आज भी स्पष्ट करते हैं। भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित हो एकत्रित होते हैं( उनकी चंदन यात्रा,देवस्नान यात्रा,रथयात्रा,बाहुडा यात्रा,उनका सोना वेष,अधरपडा और नीलाद्रि विजय व नवकलेवर आदि) में मैं वहां पर अवश्य विद्यमान रहता हूं।यहीं नहीं रथयात्रा भक्त के शरीर तथा आत्मा का मेल है।रथयात्रा आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है।स्कन्द पुराण,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी नगरी श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है जिसके माध्यम से हमें अपने शाश्वत आध्यात्मिक शक्ति बोध और सौंदर्य बोध की जानकारी मिलती है।यही नहीं,श्रीमंदिर में विराजमान जगन्नाथ भगवान सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार,व्यक्त-अव्यक्त,लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं। भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के रुप में सत्यं,शिवं तथा सुंदरम् के प्रतीक हैं। शंखक्षेत्र पुरी एक धर्मकानन भी है जहां पर आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा और दीक्षा वहां के विभिन्न मठों के माध्यम से प्रदान की जाती है।जगन्नाथ जी की दैनंदिनी को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमें क्या खाना चाहिए,क्या पहनना जाहिए और अपने साथ-साथ सभी के कल्याण के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए।इस पुरुषोत्तम क्षेत्र पुरी में समय-समय पर विद्यापति भी आये,आदिशंकराचार्य भी आये, चैतन्य महाप्रभुजी भी आये, रामानुजाचार्य जी आये, जयदेव,नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक संत-महात्मा कविगण भी आये और भगवान जगन्नाथ की अलौकिक महिमा से वे आध्यात्मिक शक्ति बोध और सौंदर्य बोध के सच्चे प्रचारक बन गये।
-अशोक पाण्डेय

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