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भगवान जगन्नाथ की जन्मस्थलीः गुण्डीचा मंदिर

प्रस्तुतिःअशोक पाण्डेय
भगवान जगन्नाथ की जन्मस्थली पुरी का गुण्डीचा मंदिर है। इसे गुण्डीचा घर,ब्रह्मलोक,सुंदराचल तथा जनकपुरी भी कहते हैं।लगभग 5 एकड में फैले इस मंदिर के चारों तरफ अतिमोहक बाग-बगीचे हैं जो मंदिर की छटा को और अधिक आकर्षक बना देते हैं।इस मंदिर का भी निर्माण जगन्नाथ पुरी के मुख्य जगन्नाथ मंदिर(श्रीमंदिर ) की तरह ही किया गया है। गुण्डीचा मंदिर का पिछला हिस्सा विमान कहलाता है। उसके अंदर का भाग है जगमोहन।उसके बाद नाट्यमण्डप और उसके बाद है –भोगमण्डप। गुण्डीचा मंदिर भी जगन्नाथ मंदिर पुरी की तरह ही उत्कलीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का बेजोड उदाहरण है।भगवान जगन्नाथ प्रतिवर्ष अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान यहीं गुण्डीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने बडे भाई बलभद्र(महान बलशाली होने के बावजूद भी भद्र हैं),लाडली छोटी बहन सुभद्रा(नारी-जाति की भद्रता की आदर्श स्वरुपा) तथा सुदर्शन जी के साथ सात दिनों तक विश्राम करते हैं। जिसप्रकार श्रीमंदिर(पुरी का मुख्य जगन्नाथ मंदिर) का निर्माण किया गया है ठीक उसी प्रकार गुण्डीचा मंदिर का भी निर्माण हल्के भूरे रंग के सुंदर कलेवर में किया गया है। यह मंदिर में देश-विदेश से पुरी आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्तों को लुभाता है।चतुर्धा देवविग्रहों के गुण्डीचा मंदिर में निवास के क्रम में सात दिनों तक वहां मनाये जानेवाले महोत्सव को गुण्डीचा महोत्सव कहा जाता है। गुण्डीचा मंदिर का निर्माण मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न ने अपनी महारानी गुण्डीचा के नाम पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा वहां की महावेदी पर करवाया था।गुण्डीचा मंदिर की रत्नवेदी चार फीट ऊंची तथा 19फीट लंबी है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र श्रद्धाबाली कहलाता है जहां की बालुकाराशि के कण-कण में श्रद्धा का निवास है। पहली बार यहीं पर राजा इन्द्रद्युम्न ने एक हजार अश्वमेध यज्ञ किया था।रथयात्रा के दौरान सात दिनों के प्रवास के क्रम में चतुर्धा देवविग्रहों को मंदिर के रत्नवेदी पर आरुढ कराकर उनकी नित्य पूजा-अर्चना की जाती है। जैसाकि सर्वविदित है कि जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के प्राण, अपनी जन्मस्थली गुण्डीचाघर में बडे ही आनन्दमय तरीके से प्रतिवर्ष रथयात्रा के क्रम में विश्राम करते हैं। हेरापंचमी के दिन जब माता लक्ष्मी क्रोधित होकर(क्योंकि माता लक्ष्मी को श्रीमंदिर में अकेले छोडकर जगन्नाथ जी अपने भाई-बहन और सुदर्शन जी के साथ रथयात्रा कर गुण्डीचा मंदिर चले आते हैं) तो वे पालकी में आरुढ होकर जगन्नाथ भगवान से मिलने के लिए श्रीमंदिर से गुण्डीचा मंदिर आती हैं लेकिन वहां पर भगवान जगन्नाथ के सेवायतगण उनको जगन्नाथजी से मिलने नहीं देते हैं। ऐसे में माता लक्ष्मी क्रोधित होकर गुण्डीचा मंदिर के सामने खडे जगन्नाथ भगवान के नंदिघोष रथ के कुछ हिस्सों को तोडकर वापस श्रीमंदिर चली आतीं हैं जिसे ओडिशी संस्कृति में हेरापंचमी कहते हैं। सात दिनों तक जहकपुरी विश्राम के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह बाहुडा विजयकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार आते हैं।वहां पर चतुर्धा देवविग्रहों का सोना वेष होता है जो अलौकिक होता है। अगले दिन उनका अधरपणा होता है तथा नीलाद्रि विजयकर महाप्रभु अपने श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान होकर पूर्ववत अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।गौरतलब है कि 2023 की रथयात्रा 20जून को है।हेरापंचमी है 24जून को, बाहुडा यात्रा 28जून को,सोना वेष 29जून को ,अधरपणा 30 जून को तथा नीलाद्रि विजय पहली जुलाई,2023 को है।विश्व के समस्त जगन्नाथ भक्तों की इच्छा 2023 की रथयात्रा(20जून) और बाहुडा यात्रा(28जून) के दौरान रथारुढ जगन्नाथ भगवान के दर्शन की है। गौरतलब है कि प्रति वर्ष पुरी में जितने भी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक आयोजन होते हैं वे सभी गुण्डीचा मंदिर के समीप की श्रद्धा बालुकाराशि में ही आयोजित होते हैं। श्रीमंदिर प्रशासन पुरी से मिली जानकारी के अनुसार गुण्डीचा मंदिर के आसपास की साफ-सफाई,कलरिंग तथा अन्य सभी तैयारियां युद्धस्तर पर चल रहीं हैं जिन्हें समय से पूर्व ही पूरा कर लिया जाएगा।
अशोक पाण्डेय

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