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मानस भुवनेश्वर है जबकि श्री जगन्नाथ जी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं

अवधारणाः
अशोक पाण्डेय,
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त

तात राम नहिं नर भूपाला।
भुवनेश्वर कालहु कर काला।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता।
व्यापक अजित अनादि अनंता।।
-गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित
महाकाव्य रामचरिचमानस,
सुंदर काण्ड.
व्यापक ब्रह्म अजित भुवनेश्वर।
लछिमन कहां बूझ करुनाकर।।
तब लगि लै आयउ हनुमाना।
अनुज देखि प्रभु अति दुख माना।।
-गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित
महाकाव्य रामचरिचमानस,
लंका काण्ड

सच कहा जाय तो ओड़िशा प्रदेश एक आध्यात्मिक प्रदेश है जहां पर सनातनी घर-घर में गणेश,श्रीराम-जानकी,शिव-पार्वती और हनुमान आदि की पूजा नित्य होती है। पूरे विधि-विधान के साथ होती है।रामनवमी से लेकर महाशिवरात्रि तक हनुमान जयंती से लेकर विजयादशमी तक। ओड़िशा के पुरी धाम के श्रीमंदिर के भगवान जगन्नाथ श्रीराम की तरह ही समस्त मर्यादाओं के आदर्श हैं।वे कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं जो पूर्णफल नारियल को स्वीकार करते हैं। वे प्रतिदिन 56 प्रकार के भोग ग्रहण करते हैं। वे साल के 12 महीनों में 13 यात्राएं(उत्सव) मनाते हैं। वे जलक्रीड़ा भी करते हैं। एक साधारण मानव की तरह वे बीमार भी पड़ते हैं और स्वस्थ होकर अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा भी करते हैं।उनको मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तरह पुरुषोत्तम कहा जाता है।जिस प्रकार श्रीराम मर्यादा के आदर्श हैं ठीक उसीप्रकार भगवान जगन्नाथ भी मर्यादा के आदर्श हैं। पुरी धाम में लगभग 10 एकड़ में 12वीं शताब्दी में निर्मित उनके श्रीमंदिर में काशी विश्ननाथ मंदिर भी है और कल्पवट भी है। यह मंदिर देवी लक्ष्मी का मंदिर है ।भगवान जगन्नाथ यहां पर अपने रत्नवेदी पर चतुर्धा विग्रह रुप में वैष्णव,शैव,साक्त,गाणपत्य,सौर,जैन और बौद्ध रुप में विराजमान होकर पूरे विश्व को शांति,एकता,मैत्री और विश्ववंधुत्व का पावन संदेश देते हैं।गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कालजयी जिस महाकाव्य रामचरितमानस की रचनाकर अमर हो गये वे भी भगवान जगन्नाथ के श्रीराम रुप(हाथ में धनुष-बाण) में दर्शन के लिए पुरी आये और जैसे ही श्रीमंदिर में वे चतुर्धा देवविग्रहों के रुप में अपने इष्टदेव श्रीराम(धनुष-बाण के साथ),जनकनंदिनी सीता,लक्ष्मण और शत्रुघ्न के दर्शनकर सहसा श्री जगन्नाथ के अनन्य उपासक बन गये।जिस ओड़िशा को उड्र,उत्कल,कलिंग और आज ओड़िशा के नाम से जाना जाता रहा है और जिसकी चर्चा वेदों,पुराणों,उपनिषदों,रामायण,महाभारत और गीता ने की है वह ओड़िशा प्रदेश पूरी विश्वमानवता को आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के माध्यम से सहज और स्वाभाविक जीवन जीने का संदेश देते है।मानव को पुण्य के लिए भगवतभाव एवं ब्रह्मभाव से जीने का संदेश देते हैं जो कलियुग में वास्तविक रुप से पुण्य है। रथयात्रा सनातनी को प्रसन्नचित्त रहना ही पुण्य का संदेश होता है।स्कंदपुराण,मत्स्य पुराण,ब्रह्मपुराण,रामायण,महाभारत तथा गीता में भी ओड़िशा की चर्चा हुई है इसका एकमात्र कारण भगवान जगन्नाथ का अपने विग्रह रुप में समस्त धर्मों और सम्प्रदायों का एकाकार रुप में श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान होना है। चारों वेदों के साक्षात विग्रह स्वरुप हैं वहां पर चतुर्धा देवविग्रह। सनातनी परम्परा में जितने भी प्रकार के हनुमान की बात बताई गई है वे सारे के सारे पुरी धाम तथा ओड़िशा के शिवालयों में स्पष्ट रुप से देखने को मिलता है। सिरुली हनुमान मंदिर,बेड़ी हनुमान मंदिर तथा राउरकेला के सबसे बड़े हनुमान मंदिर का ओड़िशा में होना यह सिद्ध करता है कि पूरा ओड़िशा प्रदेश श्री जगन्नाथ भगवान के रुप में श्रीराममय है।गौरतलब है कि ओड़िशा के कोणार्क सूर्यमंदिर को आज पूरा विश्व जानता है। वहां पर विश्व प्रसिद्ध रामकथावाचक परम पूज्य मोरारी बापू ने आज से लगभग दो दशक पूर्व रामकथा कही थी जिसका विषय था रामचरितमानस में काम भावना और उसके माध्यम से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि सनातनी लोगों के जीवन में काम भाव भी जरुरी है लेकिन उसमें आवश्यकता से अधिक आसक्त होना तथा काम भाव से आवश्यकता से अधिक विमुख होना दोनों उचित नहीं है। वहीं मोरारी बापू ने 2016 में भुवनेश्वर में मानस-भुवनेश्वर की कथा सुनाई थी जिसमें वे ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर को मंदिरों का शहर स्वीकार करते हुए ओड़िशा को वैष्णव और शैव का केन्द्र भी बताया। उनके अनुसार राम के इष्टदेव शंकर भगवान हैं तो भगवान श्रीराम के इष्टदेव भगवान महाप्रभु लिंगराज हैं। ओड़िशा में सच तो यह भी है कि भगवान शिव जिसप्रकार रामचरितमानस में विप्ररुप,आत्मरुप, लघुरुप, निर्वाणरुप, भीमरुप, त्रिभुवनरुप, विश्वरुप, मानवरुप, करुणारुप, बिकटरुप, विश्वासरुप और भिक्षुरुप में वर्णित हैं वे सभी रुप ओड़िशा के विभिन्न शिवालयों में देखने को मिलता है। गत 17 जनवरी,2024 को पुरी में भगवान जगन्नाथ के प्रथमसेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेव जी महाराज तथा ओड़िशा के माननीय मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक के द्वारा श्रीमंदिर परिक्रमा प्रकल्प का अभूतपूर्व लोकार्पण वह पुरी धाम में पिछले लगभग 700 वर्षों में कभी नहीं हुआ था। ओड़िशा का ब्रह्मगिरि स्थित भगवान अलारनाथ जी का मंदिर भगवान विष्णु के चतुर्भुज रुप का प्रत्यक्ष प्रमाण है जहां पर कभी भगवान ब्रह्माजी भी आकर तपस्या किया करते थे। ओड़िया जगमोहन रामायण जिसे दाण्डी रामायण भी कहा जाता है उसके रचयिता 15वीं सदी के बलराम दास भी मानते हैं कि भगवान श्रीराम मर्यादा के आदर्श हैं और जगन्नाथ भी उसीप्रकार सभी रुपों में आदर्श हैं। सच तो यह भी है कि पिछले लगभग पांच वर्षों से जिसप्रकार ओड़िशा प्रदेश सरकार ओड़िशा के समस्त देवालयों का जीर्णोद्धार कर रही है उससे तो एकबात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है कि महाप्रभु जगन्नाथ का देश ओड़िशा प्रदेश भगवान श्रीराम की तरह की मर्यादा के वास्तविक संदेश को आनेवाले दिने में पूरे विश्व को भगवान जगन्नाथ के माध्यम से अवश्य देगा। जिसप्रकार रामचरितमानस सद्गंथ पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हेतु एकमात्र क्रांतिकारी अमर रचना है,भ्रांतिहारी रचना है।इसके श्रवण मात्र से शांति मिल जाती है और मन में करुणा, प्रेम, सहयोग,दया, ममता,दुलार,भाईचारा, बंधुत्व, सत्य, न्याय,अहिंसा, परोपकार, जनमत का आदर और हमारे समग्र दायित्वों का व्यावहारिक बोध हो जाता है ठीक उसीप्रकार ओड़िया जगमोहन रामायण भी है।अंत में, यह कहना कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कि ओड़िशा में मानस भुवनेश्वर है जबकि श्री जगन्नाथ जी प्रत्यक्ष रुप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं।
-अशोक पाण्डेय

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